वर्द्धमान नामक एक किशोर अपने साथियों के साथ कुंडलग्राम में खेल रहा था कि तभी वहाँ एक जहरीला साँप आया। सभी बच्चे उसे देख इधर-उधर भाग गए, लेकिन वर्द्धमान वहीं खड़ा रहा। साँप के पास आने पर उसने झुककर उसे प्यार से सहलाया। साँप शांतिपूर्वक रेंगता हुआ चला गया।
यह देखकर उसके साथी हैरान रह गए। वे पास आकर बोले- तुम तो बड़े वीर हो। तुमने तो चमत्कार कर दिया। और सभी उसे कंधे पर उठाकर नगर की ओर चल दिए। इस घटना के कुछ दिन बाद एक पागल हाथी ने नगर में उत्पात मचाया। लोगों की जान पर बन आई।
ऐसे में वर्द्धमान ने हाथी के पास पहुँचकर उसे प्यार से छुआ। हाथी शांत होकर वहीं बैठ गया। यह देख लोग अपने-अपने घरों से निकल आए। इस घटना के बाद वर्द्धमान को महावीर कहकर पुकारा जाने लगा।
वर्द्धमान नामक एक किशोर अपने साथियों के साथ कुंडलग्राम में खेल रहा था कि तभी वहाँ एक जहरीला साँप आया। सभी बच्चे उसे देख इधर-उधर भाग गए, लेकिन वर्द्धमान वहीं खड़ा रहा। साँप के पास आने पर उसने झुककर उसे प्यार से सहलाया।
वर्द्धमान के चमत्कारों को देख उसके पिता राजा सिद्धार्थ को राज ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर विश्वास होने लगा कि उनका पुत्र एक दिन राजाओं का राजा यानी सम्राट बनेगा। लेकिन वह राजपुत्र होकर भी भोग-विलास से दूर था और जीवन के सत्य को जानना चाहता था।
माता-पिता के देहावसान के बाद एक दिन वह वस्त्राभूषण त्यागकर वन में चला गया और संन्यासी का जीवन व्यतीत करने लगा। निर्वस्त्र संत को देखकर लोग फब्तियाँ कसते, कीचड़ फेंकते, मारते-पीटते, लेकिन महावीर पर इन सबका कोई असर नहीं होता। वे तो अपने मन पर काबू पाकर इंद्रियों को जीत चुके थे।
अंततः 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने अपने प्रवचनों से लोगों का मन जीतना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनकी ख्याति चारों ओर फैलने लगी। उनके प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक राजा-महाराजा उनके शिष्य बने और महावीर बने सही अर्थों में राजाओं के राजा यानी सम्राट।
दोस्तो, कहते हैं असली महावीर वही है जिसने इंद्रियों को जीतकर मन को अपने वश में कर लिया हो। क्योंकि मन पर काबू पाना ही दुनिया का सबसे कठिन काम है। बड़े-बड़े शूरमा भी यहीं आकर मत्था टेकते नजर आते हैं। आखिर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों पर लगाम कसना किसी ऐसे-वैसे के बस की बात जो नहीं।
हर कोई ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा यह काम कर लेता तो फिर बात ही क्या थी। लेकिन ऐसा होता नहीं है, हो ही नहीं सकता। इसके लिए तो चाहिए दृढ़संकल्प, दृढ़ इच्छाशक्ति। इसलिए जो यह काम कर दिखाता है, वही सही अर्थों में महावीर होता है।
और फिर एक बार जिसने अपने मन को जीत लिया, फिर उसे काहे का भय, काहे की चिंता। उसे न सुख के प्रति आसक्ति रहती है, न दुःखों का डर। वह अपने-पराए से ऊपर उठकर सोचता है। जिसने इन अवगुणों से निजात पा ली, फिर उसे कौन रोक पाया है। वह जो चाहता है, पाता है।
दूसरी ओर, जब किसी चीज की आस रखी जाती है तो वह कभी पूरी नहीं होती और आस छोड़ते ही वह आपके सामने होती है। यानी आपकी इच्छा यदि कुछ पाने की है तो कुछ का त्याग करो। त्याग से जो प्राप्त होगा, वह स्थिर रहेगा। इसलिए यदि आपकी चाह सब कुछ पाने की है तो सब कुछ त्यागना भी पड़ेगा। यकीन मानिए, आपको सब कुछ मिलेगा।
ऐसा मिलेगा जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी, बशर्ते त्याग मन से हो। यदि मन के कोने में हल्की-सी भी चाह रह गई तो कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए सफल होना चाहते हो तो मन में बैठे सभी पूर्वाग्रहों को पहले साफ कर दो फिर अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य में मन लगा दो। आप ठीक लय से अपना लक्ष्य पाने में जरूर सफल होंगे।
और अंत में, आज महावीर जयंती है। आज ही से अपने मन पर काबू पाना शुरू करें, इसे जीतें। हालाँकि यह आसान काम नहीं है, क्योंकि किसी अपने से अधिक ताकतवर को जीतना एक बार आसान है, लेकिन अपने मन को जीतना नहीं। लेकिन यदि एक बार आप इस पर विजय पाने मेंसफल हो गए यानी आपने अपना मन जीत लिया तो फिर आप दूसरों के मन को भी आसानी से जीत लेंगे। इस तरह हृदय सम्राट बनकर आप सबके दिलों पर राज करेंगे। सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ।