बच्चे बहुत नाज़ुक मन के होते हैं, बिलकुल गीली मिट्टी जैसे। उन्हें आप जो सीखाना चाहते वे तुरंत ही सीख जाते है। छोटे बच्चों के ढ़ेरो अजीब प्रकार के सवाल होते है, कई बार वे आपसे ऐसे कुछ सवाल कर देते हैं जिन्हें उनकी इस नासमझी वाली उम्र में समझा पाना बेहद मुशकिल होता है। ऐसे में कई बार पैरेंट्स बात को टालने के लिए कोई झूठी कहानी या बात बच्चे को बता देते है। लेकिन आपके ऐसे व्यवहार से बच्चे सच और झूठ की समझ नहीं कर पाते है और दूसरों के सामने वे भी कुछ भी झूठी कहानी बना कर बोल देते है।
आपने कई बार देखा होगा कुछ बच्चे घर आए मेहमानों के सामने ये झूठ तक कह देते है कि आपने उन्हें मारा इसलिए वे रो रहे हैं जबकि हकिकत में ऐसा नहीं होता है। दरअसल उन्हें खुद ही पता नहीं होता है कि वे झूठ बोल रहे है। उन्हें झूठ क्या होता है इसकी समझ नहीं होती है। अपने मन की कल्पना व पूरानी कोई बात याद करके वे दूसरों को ऐसे बता देते है जैसे की वो सच में अभी ही हुआ हो।
ऐसे में आपको उन्हें झूठ और सच का फर्क करना खुद के व्यवहार से सीखाना होगा। आईए जानते है वह व्यवहार जो आपको अपने बच्चे में सच बोलने की आदत डालने के लिए करना चाहिए।
1. बच्चों के आपसे या औरों से झूठ बोलने के कई कारण हो सकते हैं। जब वे बड़े होने लगते हैं, स्कूल जाने लगते हैं तब वे अपने परिवार के सुरक्षित वातावरण से बाहर हो जाते हैं और ज्यादातर समय अपने दोस्तों के साथ बिताते हैं।इससे आपका बच्चा बहुत से दूसरें बच्चों व अलग-अलग प्रकार के लोगो से संपर्क में आता है जिससे उसके व्यवहार में कई परिवर्तन आते हैं, वो कुछ अच्छी चीज़े सीखता है तो कुछ बुरी भी। झूठ बोलना उसी में से एक है।
2. अक्सर बच्चे सज़ा के डर से झूठ बोलते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि बच्चों को बचपन से ही अपने विचार और अपने मन की बात कहने की स्वतंत्रता मिले। अगर बच्चे कुछ गलत चीज़ या बहुत महंगी चीज़ की मांग करते हैं तो उन्हें आपके मना करने का उचित कारण बताएं कि आपने ऐसा क्यों किया। बच्चे को कनविंस करें तब आगे से वह आपकी बात मानने लगेगा।
3. 3 से 7 साल की उम्र के बच्चे थोड़ा ज्यादा झूठ बोलते हैं क्योंकि इस उम्र में वे सच और झूठ के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं। वे अपनी कल्पनाओं को शब्दों में पिरोकर और उसे दूसरों को बताकर सच का रूप दे देते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आपका बच्चा झूठ बोलने लग गया है। इसके लिए आपको उसका वास्तविकता से परिचय कराना होगा। उसकी मानने लायक इच्छाओं को पूरा करें और जो नही हो सकतीं उसके लिए उसकी समझ पैदा करवाएं।
4. माता-पिता और शिक्षकों को अपने बरताव में पारदर्शिता रखनी ज़रूरी है। अगर आप अपने बच्चे से कोई प्रॉमिस करते हैं तो उसे ज़रूर निभाएं। उनको ये एहसास दिलाएं कि आप उन पर विश्वास करते हैं तो वे कोई गलत काम नही करेंगे और अगर कोई गलती करेंगे भी तो आपको बताने में डरेंगे नहीं।
5. वे हर काम करने से पहले आपकी अनुमति लेंगे और हमेशा सच बोलेंगे क्योंकि वे आपसे डरते नहीं हैं बल्कि आप पर विश्वास करते हैं और जानते हैं कि आप सब ठीक कर देंगे। बच्चे के पहले आदर्श उसके माता-पिता होते हैं।
6. यदि माता-पिता खुद ही अक्सर झूठ बोलते हैं तो वे कैसे अपने बच्चे से सच बोलने ही उम्मीद कर सकते हैं। आप उनके रोल मॉडल हैं, यह बात आपको कभी नहीं भूलना चाहिए। ये सही है कि कभी-कभी ऐसी सिचुएशन आ जाती है जब हमें झूठ बोलना पड़ जाता है, तब अपने बच्चे को बताएं कि आपने ऐसा क्यों किया। इससे बच्चा एक निश्चित व्यवहार करना सीखता है।
7. बच्चे की ईमानदारी और सच्चाई पर उसे शाबाशी दें, इससे उसे प्रोत्साहन मिलेगा। माता-पिता को करना केवल इतना है कि अपने पैरेंटिंग के तरीकों समयानुसार बदलने की ज़रूरत है। अब पुराना समय नहीं है कि बच्चे एक बार में बात सुन लिया करते हैं। अब उन्हें गुमराह करने के लिए बहुत-सी चीज़ें है, इसलिए माता-पिता बच्चों को डांटे और पिटाई ना करें बल्कि प्यार से उन्हें सब सिखाएं।