ईसा का जन्म और बचपन

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पौने दो हजार साल पहले की बात है। फिलिस्तीन में उन दिनों हिरोदका राज था। सम्राट आगस्ट्स के हुक्म से रोमन जगत की मर्दुमशुमारी हो रही थी। उसमें शामिल होने के लिए यूसुफ नाम का यहूदी बढ़ई नाजरेत नगर से वेथलहम के लिए रवाना हुआ। वहीं पर उसकी पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से ईसा का जन्म हुआ।

संयोग ऐसा था कि उस समय इन बेचारों को किसी धर्मशाला में भी ठिकाना न मिल सका। इस लाचार बच्चे को कपड़ों में लपेटकर चरनी में रख दिया गया। आठवें दिन बच्चे का नाम रखा गया, यीसु या ईसा। सौरी से निकलने के बाद मरियम और यूसुफ बच्चे को लेकर यरुशलम गए। उन दिनों ऐसी प्रथा थी कि माता-पिता बड़े बेटे को मंदिर में ले जाकर ईश्वर को अर्पित कर देते थे। इन लोगों ने भी इसी तरह ईसा को अर्पित कर दिया। ईसा दिन-दिन बड़े हो रहे थे। यूसुफ और मरियम हर साल यरुशलम जाते थे। ईसा भी साथ जाते थे।

ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में दो दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। सत्य को खोजने की वृत्ति उनमें बचपन से ही थी।

यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा : ईसा जब 30 साल के हुए, तो एक दिन किसी से उन्होंने सुना कि पास के जंगल में जॉर्डन नदी के किनारे एक महात्मा रहते हैं। उनका नाम है, यूहन्ना (जॉन)। बहुत से लोग उनका उपदेश सुनने जाते थे। ईसा को भी उत्सुकता हुई। वे भी यूहन्ना का उपदेश सुनने के लिए निकल पड़े।

यूहन्ना कहते थे : अब धरती पर प्रभु के राज्य का समय आ गया है। प्रभु के राज्य में हर आदमी यह जान लेगा कि सब आदमी बराबर हैं न कोई किसी से ऊँचा है, न कोई किसी से नीचा। सब लोगों को आपस में मिल-जुलकर प्रेम से रहना चाहिए और सबके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। इस तरह रहने और बुरे काम छोड़ देने से ही धरती पर प्रभु का राज्य आ सकेगा। सैनिक उनके पास जाते, तो वे उनसे कहते, दूसरों का माल मत छीनो। जो कुछ तुम्हें मिला है, उसी में खुश रहो। किसी से गाली-गलौज मत करो। लोग पूछते, तब हम करें क्या? यूहन्ना कहते, जिसके पास दो कोट हैं, वह एक कोट उसे दे दे, जिसके पास एक भी नहीं है। जिसके पास भोजन है, वह उसे खिला दे, जिसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है।

अमीर लोग यूहन्ना के पास जाते, तो वे उसे कहते, तुम गरीबों को सताओ मत। उन्हें लूटो मत। यूहन्ना लोगों से कहते, अच्छी करनी करो। अपना जीवन बदल डालो, नहीं तो तुम्हारी भी गति उस बिना फल वाले पेड़ की तरह होगी, जो ईंधन के लिए काट दिया जाता है। जो लोग उनसे कहते कि हम अपना जीवन बदलेंगे, बदी छोड़कर नेकी करेंगे, उन्हें वे जॉर्डन नदी में नहलाते और कहते, मैंने तुम्हें जल से पवित्र किया है। तुम्हारी अंतरात्मा में प्रभु की जो शक्ति भरी है, वह तुम्हें पूरे तौर से पवित्र करेगी।

ईसा को यूहन्ना की बातें बहुत जँचीं। उन्होंने यूहन्ना से दीक्षा ले ली। उनकी बातों पर गहरा विचार करने के लिए वे घर लौटने के बजाय जंगल में ही रह गए। यूहन्ना की बातों पर ईसा ने गहराई से चिंतन और मनन किया और अंत में निश्चय किया कि हमें प्रभु की इच्छा के अनुसार प्रभु की सेवा करनी चाहिए।

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प्रभु के राज्य का उपदेश : इसके बाद प्रभु ईसा जगह-जगह प्रवचन करने लगे। वे लोगों से कहते, प्रभु का राज्य कहीं दूर नहीं है वह हमारे भीतर ही है। हमारी आत्मा के ही भीत है। हमें ही उसकी स्थापना करनी होगी। हम अपने आपको बदलकर, अपने में परिवर्तन करके प्रभु का राज्य ला सकते हैं।

उसके लिए हमें सबके साथ प्रेम करना होगा। सबके सुख में सुखी होना होगा। सबके दुःख में दुःखी होना होगा। हम अलग-अलग नहीं हैं, हम सब एक हैं- इस तरह हमें सोचना होगा और एक-दूसरे के साथ इसी तरह का व्यवहार करना होगा।

प्रभु के राज्य में अहंकार और घमंड के लिए स्थान नहीं है। अमीरों का वहाँ प्रवेश नहीं है। जो नम्र हैं, विनीत हैं, गरीब हैं, दीन हैं, सच्चे हैं, ईमानदार हैं, दयालु हैं, उन्हीं को उस राज्य में प्रवेश मिलेगा। स्वर्ग के राज्य में, प्रभु के राज्य में वे ही लोग जा सकेंगे, जो ईश्वर को आदेश को मानकर उसे अमल में लाकर दिखाएँगे।

ईसा के पाँच आदे
ईसा ने पाँच आदेश दिए। उन्होंने कहा,
1. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि किसी की हत्या मत करो और जो आदमी हत्या करता है, वह गुनहगार है। पर मैं तुमसे कहता हूँ कि जो आदमी अपने भाई पर गुस्सा करता है, वह परमात्मा की नजर में गुनहगार है। जो आदमी अपने भाई को गालियाँ देता है, कड़वी बातें कहता है, वह और ज्यादा गुनहगार है। अपने भाई पर मन में जो क्रोध हो, उसे प्रार्थना करने के पहले निकाल दो। उससे सुलह कर लो।

2. पुराने धर्मग्रंथों में कहा है कि व्यभिचार मत करो और पत्नी से अलग होते हो, तो उसे तलाक दे दो। पर मैं तुमसे कहता हूँ कि व्यभिचार तो करना ही नहीं चाहिए। किसी पर कुदृष्टि डालने वाला भी ईश्वर के आगे गुनहगार है। जो आदमी पत्नी को तलाक देता है, वह खुद व्यभिचार करता है और पत्नी से भी व्यभिचार कराने का कारण बनता है। जो आदमी उससे विवाह करता है, उसे भी वह गुनहगार बनाता है।

3. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि कसम न खाओ, किंतु परमात्मा के आगे अपनी प्रतिज्ञाओं पर डटे रहो। पर मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम्हें किसी भी हालत में कसम नहीं खानी चाहिए। किसी के बारे में पूछा जाए, तो 'हाँ' या 'न' में ही जवाब दे देना चाहिए।

4. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि 'आँख के बदले आँख फोड़ दो, दाँत के बदले दाँत तोड़ दो।' पर मैं तुमसे कहता हूँ कि बुराई का बदला बुराई से मत दो। कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चाँटा मारे, तो तुम बायाँ गाल भी उसके सामने कर दो।

5. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि 'केवल अपनी ही जाति के लोगों से प्रेम करो। पर मैं तुमसे कहता हूँ क तुम्हें हर आदमी से प्रेम करना चाहिए। जो तुम्हें दुश्मन मानते हों, उनसे भी प्रेम करना चाहिए। सभी मनुष्य एक ही पिता की संतान हैं। सब भाई-भाई हैं। सबके साथ तुम्हें प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

पवित्र जीवन : 'सत्यमय जीवन बिताओ। सब पर प्रेम करो। सब पर दया करो। दान करो। क्रोध मत करो। लोभ मत करो। विषय वासना के फेर में मत पड़ो। अपराधी को भी क्षमा करो। पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। जो सत्य हो, उसे प्रकट करने में झिझको मत। न अन्याय करो, न अत्याचार न दिखावा करो, न प्रदर्शन। ईश्वर पर विश्वास करो। गरीबों की सेवा करो।'

यही था ईसा का संदेश, जिसे उन्होंने जनता के सामने रखा और अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखा दिया। उनका सारा जीवन त्याग, सेवा और समर्पण की भावना से भरा पड़ा है।

चमत्कार
'विश्वास फलदायक : - विश्वास का फल होता है। कितने ही रोगी विश्वास से अच्छे हो गए। ईसा की प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी बारह लोग ईसा के शिष्य बने।

ईसा का विरोध : 'पैसे वालों का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं हो सकता। सुई के छेद से ऊँट भले निकल जाए, धनवान व्यक्ति प्रभु के राज्य में नहीं पहुँच सकता। अपनी सारी दौलत गरीबों में बाँटकर, किंन बनकर मेरे साथ आओ। ऐसी बातें सुनकर पैसे वाले लोग ईसा के विरोधी बन गए।

पुरानी गलत प्रथाओं का भी ईसा ने विरोध किया। सत्य के लिए वे किसी की परवाह नहीं करते थे। नतीजा यह हुआ कि दिन-दिन उनका विरोध बढ़ने लगा।

ईसा का बलिदान : सन्‌ 29 ई. के लगभग प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुँचे। वही उनको पकड़ने और दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया।

पिलातुस बोला, 'यह निर्दोष है'।
विरोधी बोले, 'यह अपने को 'ईश्वर का पुत्र' कहता है। इसे क्रूस पर लटकाना चाहिए।'

आखिर विरोधियों की ही बात मान ली गई।

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ईसा ने क्रूस पर लटकते समय भगवान से प्रार्थना की, 'हे प्रभु, क्रूस पर लटकाने वाले इन लोगों को क्षमा कर। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।

ईसा का संदेश :- प्रभु ईसा ने जब से होश सँभाला, तभी से उन्हें लगा कि उनके यहूदी समाज में नाना प्रकार की गलत मान्यताएँ फैली हैं। उन्होंने उनका विरोध करके मनुष्य को सही रास्ते पर चलने की सीख दी। उस समय के समाज में आदमी अपने आपको बहुत नीच, पापी और अपवित्र मानकर आत्मग्लानि से पीड़ित रहता था। आदम-हौवा की गलती की मान्यता उसके सिर पर चढ़कर बोलती थी।

ईसा को यह चीज बुरी तरह खटकी। उन्होंने मनुष्य को संदेश दिया कि तुम तो पृथ्वी के नमक हो। विश्व के प्रकाश हो। तुम किसलिए अपने को अपवित्र और पापी समझते हो? परम पवित्र प्रभु की संतान को ऐसी मान्यता शोभा नहीं देती तुम अपने को नीच और अपवित्र मत समझो। अपना आदर करो। अपना आत्मसम्मान जगाओ। तुम सब परमपिता की संतान हो। सब बराबर हो। कोई नीचा नहीं, कोई ऊँचा नहीं।

क्रोध मत करो : क्रोध सारे उत्पात की जड़ है। दुनियाभर की बुराइयाँ क्रोध में भरी हैं, इसलिए क्रोध को दूर करना आवश्यक है। सारी लड़ाइयाँ जरा-जरा सी बातों को लेकर होती हैं। ईसा ने इसे रोकने के लिए कहा-

1. जो कोई अपने किसी भाई पर क्रोध करता है, उसे ईश्वर की तरफ से सजा भोगनी पड़ेगी।
2. तुम दूसरे का सामना हमले से मत करो। चाहे जितना गुस्सा भरा रहे, दूसरे पर वार न करो। बुराई का बदला बुराई से मत दो।
3. दोस्त को ही नहीं, दुश्मन को भी प्यार करो।

जो तोकू काँटा बुवै, ताहि बोउ तू फूल!

सत्य बोलो : ईसा ने देखा कि लोग सत्य नहीं बोलते, झूठ बोलते हैं नमक-मिर्च लगाकर बात का बतंगड़ बना देते हैं और खूब झूठी कसमें खाते हैं। यह आदत ठीक नहीं। उन्होंने कहा, 'तुम्हें जो कहना हो, 'हाँ' या 'न' में कह दो। ज्यादा शब्द मुँह से निकालोगे, तो वे तुम्हारे भीतर भरे किसी पाप की वजह से ही निकलेंगे।'

किसी पर कुदृष्टि न डालो
ईसा ने मन की पवित्रता पर बहुत जोर दिया। उन्होंने कहा, 'जो आदमी मन से भी किसी स्त्री पर बुरी नजर डालता है, उसने मानो उससे बदचलनी कर ही ली!'

नेकी कर और दरिया में डाल
ईसा ढोंग और दिखावे को बहुत बुरा मानते थे। उन्होंने इसकी कड़ी निंदा की। उनका कहना था कि 'नेकी कर और दरिया में डाल।' ईमानदार रहो। लोगों के साथ भला व्यवहार करो और कसूर करने वाले को हमेशा क्षमा करते रहो।

ईश्वर पर विश्वास करो : हम मुँह से तो कहते हैं कि हम ईश्वर को मानते हैं, पर भीतर से अपने पर ही भरोसा रखते हैं। ईसा ने कहा, जीवन की आवश्यकताओं की चिंता तुम व्यर्थ ही करते हो।

आगे-पीछे हरि खड़े, जब माँगूँ तब देय।
माँगो, मिलेगा। दरवाजा खटखटाओ, खुलेगा।
यह है, ईसा का पवित्र संदेश! सत्य, प्रेम और करुणा से ओतप्रोत!

जो कोई इसका पालन करेगा, उसका कल्याण हुए बिना नहीं रहेगा। जरूरत है, सच्चे जीसे, ईमानदारी से इस पर चलने की। काश, हम इस पवित्र मार्ग पर चल सकें!