ये वही अप्रैल है, जब चारों तरफ मौत की आहट थी, फेसबुक खोलो या व्हाट्यसऐप। हर तरफ श्रद्धाजंलियां दी जा रही थीं। अखबारों में मौत की खबरें और तस्वीरों ने हिला दिया था। श्मशान ओवरफ्लो थे, अस्पतालों और श्मशानों के बाहर शवों की कतारें लगीं थी, शवों को जलाने के लिए श्मशान घाटों में प्री-बुकिंग चल रही थी।
अपनों के शवों को जलाने के लिए भी पहले आओ, पहले पाओ जैसी स्कीम याद आ रही थी। दिन रात भटकने के बाद भी परिजनों को अपनों के शव जलाने के लिए शमशान घाट नहीं मिल रहे थे।
उधर अस्पतालों में बेड के लिए मारामारी, ऑक्सीजन की कमी से होती मौतें और रेमेडेसिविर इंजेक्शन समेत दूसरी दवाओं की कालाबाजारी। मौत का खौफनाक मंजर, चारों तरफ चीख पुकार, मदद की गुहार और मौत की आहट।
महीना था अप्रैल और साल 2021— अब साल 2022 है, महीना वही अप्रैल।
वेबदुनिया आपके लिए फिक्रमंद क्योंकि साल बदला है, वायरस नहीं। इसलिए जरा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आए...
कोरोना की आहट के नए आंकड़ें
देश में एक दिन में कोविड-19 के 2,380 नए मामले सामने आए हैं। कोरोना वायरस से अब तक संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 30 लाख 49 हजार 974 हो गई। पिछले 7 दिन में 10,951 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं जबकि 325 लोगों की मौत हो चुकी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार सुबह जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में संक्रमण से 56 और लोगों की मौत के बाद मृतक संख्या बढ़कर 5,22,062 हो गई है।
(पिछले साल 2021 में अप्रैल में यह स्थिति कोरोना की, आंकड़ें साल 2021 के)
क्या हमने भुला दिया अपनों की मौतों को?
अब जब देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर समेत दूसरे इलाकों से कोरोना वायरस के ग्राफ के ऊपर चढ़ने की खबरें आ रही हैं तो हम उन्हें बेहद हल्के में या लापरवाही के साथ ले रहे हैं। पिछले साल अप्रैल, मई और जून में कोरोना वायरस ने मौत का तांडव मचा दिया था। लेकिन हमने मौत से भी जिंदगी का सबक नहीं लिया।
हम न मास्क ही पहन रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। न अपनी हेल्थ और इम्युनिटी की तरफ ध्यान दे रहे हैं। क्या हम इतनी आसानी से अपनों की मौत का वो तांडव भूल गए।
हमारी अपनी जिम्मेदारी का क्या?
यह बात सही है कि सरकार ने पूरे देश में वैक्सीनेशन ड्राइव बेहद सफल तरीके से चलाया। इससे लाखों- करोड़ों लोगों की जानें बचीं, लेकिन क्या हम हर बार सिर्फ वैक्सीन या सरकार के भरोसे रहेंगे, हमारी अपनी तरफ से इस महामारी और संक्रमण से बचने के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं बनती।
हमने हर साल गलती की, क्या इस साल भी!
हमने कोरोना वायरस के मामले में हर साल गलतियों को दोहराया। हम सोचते रहे कि साल बदलेगा तो कोरोना भी किसी मौसम की तरह चला जाएगा। लेकिन हम यह नहीं सीख पाए कि इसी कोरोना के साथ सावधानी और सतर्कता के साथ रहना हमारा न्यू नॉर्मल है।
हमने 2020 में गलतियां की और 2021 में भी हमने उन्हें दोहराया। नतीजा यह था कि हमारे सामने मौतों का अंबार था। अब जबकि 2022 में पिछले सालों के मुकाबले कोरोना के मामले में कुछ राहत रही तो हम यह देखकर बिल्कुल ही बेपरवाह हो गए। जबकि एक बार फिर से कोरोना पूरे खौफनाक इरादों के साथ दस्तक दे रहा है। ग्राफ बढ़ रहा है, आंकड़ें बढ़ रहे हैं।