देश में ओमिक्रॉन के दो केस मिलने के बाद अब वैक्सीन के बूस्टर डोज को लेकर चर्चा तेज हो गई है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अब तक सबसे कारगर हथियार के रूप में सामने आई वैक्सीन के बूस्टर डोज (तीसरे डोज) को देश के शीर्ष वैज्ञानिक संक्रमण से बचाव का सबसे फुलप्रूफ तरीका मानते है। वहीं दूसरी ओर कोविशील्ड बनाने वाली सीरम इंडिया ने भारतीय औषधि नियामक (DGCI) से कोविशील्ड को बूस्टर डोज के तौर पर मंजूरी देने का अनुरोध किया है। कंपनी का कहना है कि संक्रमण के नए स्वरूप को देखते हुए बूस्टर खुराक की जरूरत है।
वेबदुनिया' से बातचीत में ICMR के पूर्व चीफ डॉ रमन गंगाखेडकर कहते हैं वैक्सीन का बूस्टर डोज कोरोना के हल्के संक्रमण से बचने का सबसे सुरक्षित उपाय है। यूरोप में जो वैक्सीन का बूस्टर डोज लिया जा रहा है वह कोरोना के माइल्ड इंफेक्शन से बचने के लिए हो रहा है। यूरोप और अमेरिका में कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण वह पर लोगों को बूस्टर डोज दिया जा रहा है।
अब नई परिस्थितियों में बूस्टर डोज पर सरकार को सोच समझ कर आगे जाना पड़ेगा और अगर बूस्टर डोज के पक्ष में प्रमाण मिलते हैं तो सरकार समय से बूस्टर डोज का डिसीजन लेगी और ऐसा कोई कारण भी नहीं है कि बूस्टर डोज के बारे में निर्णय को सरकार टालेगी। सरकार शायद हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले लोगों को बूस्टर डोज देने के बारे में सरकार निर्णय एक दो महीने में निर्णय ले सकती है।
वहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आनुवंशिकी (जैनेटिक्स) के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट की दस्तक के बाद अब सरकार को वैक्सीनेशन पर फोकस कर बूस्टर डोज के ओर बढ़ना चाहिए। भारत को सबसे पहले हेल्थ वर्कर्स, फिर कमजोर इम्युनिटी वाले वाले लोगों को वैक्सीन की तीसरी डोज देना चाहिए।
ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के दस्तक देने के बाद अब हमारे पास बहुत अधिक विकल्प नहीं है। अभी ऐसे हालात नहीं है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट पूरे देश में फैल गया है। ऐसे में सरकार का पूरा फोकस वैक्सीनेशन पर कर अब बूस्टर डोज की तरफ आगे बढ़ना चाहिए। वह कहते हैं कि बूस्टर डोज इसलिए भी जरुरी है कि क्योंकि दिसंबर के बाद देश की एक बड़ी आबादी तेजी से इम्युटी खोने लगेगी।
देश में वर्तमान में जो वैक्सीनेशन की रफ्तार चल रही है वह पांच फीसदी की दर से एंटीबॉडी बढ़ा रहा है लेकिन अब देश की आबादी 10 फीसदी की दर से एंटीबॉडी खो भी रही है। भले ही वैक्सीनेशन का आंकड़ा बढ़कर 75 फीसदी से 80 से 85 फीसदी हो रहा है लेकिन अब दिसंबर के बाद बड़ी आबादी वैक्सीन के चलते आई एंटीबॉडी को खोने लगेगी और उसके दोबारा संक्रमण की चपेट में आने का खतरा पैदा हो जाएगा।
इस बीच देश के शीर्ष जीनोम वैज्ञानिकों ने 40 साल से ऊपर के लोगों के लिए कोरोना वायरस वैक्सीन के बूस्टर शॉट की सिफारिश की है। वैज्ञानिकों ने उन लोगों को भी बूस्टर शॉट देने की बात की है, जो हाई रिस्क वाले हैं। INSACOG ने अपने बुलेटिन में कहा कि टीका ना लगवाने वाले लोग रिस्क में हैं। इन लोगों के टीकाकरण के साथ ही 40 साल के ऊपर के लोगों के लिए बूस्टर शॉट पर प्राथमिकता के साथ विचार किया जाना चाहिए।
एक्सपर्ट का मानना है कि ऐसे लोग जिनमें इम्युनिटी की कमी है और वैक्सीन की दोनों डोज के बावजूद उनमें पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं बन रही हैं उनमें इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में देश में हेल्थ वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स, सीनियर सिटिजंस और कोमॉर्बिडिटीज वाले लोगों को बूस्टर डोज देने की मांग सबसे तेज है।