लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री कमलरानी वरुण का कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई और सभी राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता उनके निधन की खबर सुनकर स्तब्ध रह गए। कमलरानी वरुण जमीन से जुड़ी हुई नेताओं में से एक थीं और उन्होंने राजनीति में पार्षद से अपना सफर शुरू किया था और प्रदेश के मंत्री तक अपनी मेहनत के बलबूते तक पहुंची थीं। इसके पीछे की मुख्य वजह जनता के बीच उनकी अच्छी पकड़ थी।
कौन थीं कमलरानी वरुण : लखनऊ में 3 मई 1958 को जन्मी कमलरानी वरुण की शादी एलआईसी में प्रशासनिक अधिकारी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रतिबद्ध स्वयं सेवक किशन लाल वरुण से हुई थी।बहू बनकर कानपुर आईं कमलरानी ने पहली बार साल 1977 के चुनाव में बूथ पर मतदाता पर्ची काटने के लिए घूंघट में घर की दहलीज पार की।
समाज शास्त्र से एमए कमलरानी को पति किशनलाल ने प्रोत्साहित किया तो वे आरएसएस द्वारा मलिन बस्तियों में संचालित सेवा भारती के सेवा केंद्र में बच्चों को शिक्षा और गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का प्रशिक्षण देने लगीं।
वर्ष 1989 में भाजपा ने उन्हें शहर के द्वारिकापुरी वार्ड से कानपुर पार्षद का टिकट दिया।चुनाव जीत कर नगर निगम पहुंचीं कमलरानी 1995 में दोबारा उसी वार्ड से पार्षद निर्वाचित हुईं।भाजपा ने 1996 में उन्हें घाटमपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा। बाद में अप्रत्याशित जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचीं कमलरानी ने 1998 में भी उसी सीट से दोबारा जीत दर्ज की।
वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हें सिर्फ 585 मतों के अंतराल से बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल संखवार के हाथों पराजित होना पड़ा था।सांसद रहते कमलरानी ने लेबर एंड वेलफेयर, उद्योग, महिला सशक्तिकरण, राजभाषा व पर्यटन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समितियों में रहकर काम किया। वर्ष 2012 में पार्टी ने उन्हें रसूलाबाद (कानपुर देहात) से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वे जीत नहीं सकीं।