पुरस्कार के बहाने बहस

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एक ब्लॉगर अनिल यादव ने कबाड़खाना ब्लॉग पर एक पोस्ट लगाई थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि -और अंत में प्रार्थना' (जिसके नाट्य रूपांतर के मंचन पर कई शहरों में सांप्रदायिक तत्वों ने हमले किए) लिखने वाले मेरे प्रिय कथाकार (आज शाम तक) एवं कबाड़ी उदयप्रकाश ने पाँच जुलाई को गोरखपुर में गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी, भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के हाथों पहला 'नरेंद्र स्मृति सम्मान' साभार प्राप्त किया। रकम कितनी थी, पता नहीं।

डॉ. कुँवर नरेन्द्र प्रताप सिंह जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया, योगी के संरक्षकत्व में चलने वाले दिग्विजयनाथ पीजी कालेज के प्रिंसिपल और गोरक्षनाथ पीठ के सलाहकार थे। अनिल यादव के कहने का अर्थ इतना था कि एक भाजपा सांसद के हाथों उदयप्रकाश क्यों पुरस्कृत हुए।

इसके बाद इस ब्लॉग पर उदयप्रकाश को लेकर एक खासी बहस छिड़ गई। इन पोस्टों पर जो कमेंट्स आए हैं वे जाहिर करते हैं कि उदयप्रकाश ने यह पुरस्कार लेकर गलती की है। इसके प्रति खेद व्यक्त करने या माफी माँगने के बजाय उदयप्रकाश ने अपने ब्लॉग पर कबाड़खाना ब्लॉग के मॉडरेटर अशोक पांडे और कबाड़ियों को इलाकाई-जातिवादी नेक्सस का सरगना ठहरा दिया।

इसके बाद यह बहस और गरमा गई और पंकज श्रीवास्तव ने अपनी एक पोस्ट बेईमानी का उदय और चुप्पी साधे हिंदी वीर में लिखा है कि हिंदीवालों के प्रति उदयप्रकाश जैसा व्यवहार कर रहे हैं, शायद वो उसी के लायक हैं। वरना इस विराट चुप्पी का अर्थ क्या है। क्यों नहीं तमाम संगठन और विचारधारा से जुड़े लेखक उदयप्रकाश के कृत्य की सार्वजनिक निंदा कर रहे हैं।

ये कैसी गिरोहबंदी है जिसमें उदयप्रकाश से बैर लेने की हिम्मत नहीं पड़ रही है। इस पोस्ट के बाद तो दिलीप मंडल, अविनाश और रंगनाथ सिंह से जैसे ब्लॉगरों ने उदयप्रकाश के खिलाफ अपनी पोस्टें लिखीं। इसमें कहा गया कि उदयप्रकाश ने यह पुरस्कार लेकर गलती की है। अविनाश ने लिखा है कि हम सब उदयप्रकाश के प्रशंसक रोते हुए अपने लेखक के किए पर प्रायश्चित करें।

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इस बीच यह हुआ कि हिंदी के तमाम वरिष्ठ और युवा लेखकों ने एक विरोध पत्र जारी किया और उदयप्रकाश के इस पुरस्कार लेने को गलत माना और कहा कि हम इससे आहत हैं। इनमें ज्ञानरंजन, विष्णु खरे से लेकर मंगलेश डबराल, असद जैदी और व्योमेश शुक्ल के नाम शामिल हैं।

तब कहीं जाकर उदयप्रकाश ने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट लगाई है जिसमें उन्होंने खेद व्यक्त किया है। वे लिखते हैं -मेरा इस देश और समाज की किसी भी उस विचारधारा से कोई संबंध नहीं है जो हिंसा, उत्पीड़न, दमन, सांप्रदायिक- नस्लीय- वर्गीय-जातिवादी घृणा पर विश्वास और आचारण करती हो। अहिंसा, लोकतांत्रिकता, मानवाधिकारों और मानवीय करुणा पर मेरी अटूट आस्था है।

अपने भाई की स्मृति में उनके शोकग्रस्त परिवार द्वारा किसी राजनीतिक नेता के हाथों दिये गए 'स्मृति सम्मान' ('पुरस्कार' कतई नहीं, जिसे बार-बार प्रचारित किया जा रहा है।) लेने के बाद भी मेरे विचार और आस्थाएँ अपनी जगह पर कायम हैं। हमेशा की तरह मेरी आने वाली कृतियाँ उसका साक्ष्य और प्रमाण देंगी।

मैं सच्चे मन से अपने उन पाठकों और प्रशंसकों से क्षमा माँगता हूँ, जिन्हें मेरे इस पारिवारिक आयोजन के राजनीतिक संदर्भों को समझ पाने में मुझसे हुई भूल के कारण ठेस पहुँची है। कुल मिलाकर एक पुरस्कार के बहाने कबाड़खाना पर अच्छी खासी बहस हुई और यह बड़े सवालों को छूती हुई और सवालों को उठाती है। इसका संबंध हिंदी ही नहीं उन तमाम बातों से है जो किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता, हिंसा और दमन के खिलाफ है।

http://kabaadkhaana.blogspot.com

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