प्यारे खतों से फूटती मोहब्बत की रूहानी रोशनी

WD
एक ब्लॉग है प्रतिभा की दुनिया। इसकी ब्लॉगर हैं प्रतिभा कटियार। यह ब्लॉग कहता है- जिस्म सौ बार जले फिर वही मिट्टी का धेला, रूह एक बार जलेगी तो वह कुंदन होगी, रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है? जाहिर है इस लाइन से इस ब्लॉग के नेचर का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह ब्लॉग रूह के जलने और कुंदन होने की बात करता है, रूह को देखने और उसे महसूस करने की बात करता है।

ये बातें यहाँ तरह-तरह से और अलग-अलग अंदाज में की गई हैं। एक अंदाज कविताओं का है। इस अंदाज में ब्लॉगर की कविताएँ भी हैं और हिंदी और विदेशी भाषाओं के कवियों की भी हैं। एक अंदाज अपनी गहरी बात को सहज-सरल गद्य में कहने का है। इसकी मिसाल आज फिर जीने की तमन्ना है शीर्षक पोस्ट में देखा जा सकता है।

लेकिन हम यहाँ इस ब्लॉग की चर्चा एक खास वजह से करना चाहते हैं। वह खास वजह है इस ब्लॉग पर दुनिया के कुछ मशहूर प्रेम-पत्र। और इसके साथ ही कुछ आम आदमियों के प्रेम-पत्र भी पोस्ट किए गए हैं जिनके नाम प्रकाशित नहीं हैं। कुछ प्रेम कहानियों और प्रेम कविताओं के साथ कुछ प्रेम-पत्र भी बहुत मशहूर हुए हैं। इन पत्रों में प्रेम का बुखार भी है और प्रेमिल बौछार भी। इसमें प्रेम का बाहरी आकर्षण भी है और रूहानी रोशनी है।

  एक ब्लॉग है प्रतिभा की दुनिया। इसकी ब्लॉगर हैं प्रतिभा कटियार। यह ब्लॉग कहता है-जिस्म सौ बार जले फिर वही मिट्टी का धेला, रूह एक बार जलेगी तो वह कुंदन होगी, रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है? जाहिर है इस लाइन से ब्लॉग के नेचर का अंदाजा लग सकता है।      
इन पत्रों में छोटी-छोटी इच्छाओं का बड़ा प्यारा-सा इजहार भी है और सपनों का सहज बखान भी। इसमें एक तरफ प्रेम की गहराई है तो दूसरी तरफ एकदूसरे को समझने की सचाई भी। अपने भय, दुःख-सुख, आकांक्षा और भावनात्मक तूफान का सादा-सा वर्णन भी है तो दुनिया जहान के गूढ़ सवालों से रूबरू होने का साहस भी है। हिदायतें और नसीहतें भी हैं। भीगे-भीगे पलों के गहरे अहसास भी हैं तो भावनाओं के कोहरे में लिपटी स्मृतियाँ भी हैं। कुल मिलाकर प्रेम के हर रंग के फूलों को और प्रेम के घने अँधेरों को यहाँ महसूस किया जा सकता है।

जाँ निसार अख्तर को उनकी पत्नी साफिया अख्तर का एक पत्र बहुत ही मार्मिक है। यहाँ यादें हैं, चिंता है और प्रेम का घना अहसास है। एक उद्दाम ख्वाहिश है लेकिन किस कदर थरथराती भाषा में इसका इजहार है यह देखना एक सुखद अनुभव है। एक बहुत ही सादा लेकिन मानीखेज भाषा में यह पत्र पुरकशिश है। उसका मजमून कितना दिलखुश कर देने वाला और छू लेने दिल वाला है आप भी मुलाहिजा फरमाएँ-

अच्छा अख्तर अब कब तुम्हारी मुस्कराहट की दमक मेरे चेहरे पर आ सकेगी, बताओ तो? बाज लम्हों में तो अपनी बाँहें तुम्हारे गिर्द समेट करके तुमसे इस तरह चिपट जाने की ख्वाहिश होती है कि तुम चाहो भी तो मुझे छुड़ा न सको। तुम्हारी एक निगाह मेरी जिंदगी में उजाला कर देती है।

सोचो तो, कितनी बदहाल थी मेरी जिंदगी जब तुमने उसे संभाला। कितनी बंजर और कैसी बेमानी और तल्ख थी मेरी जिंदगी, जब तुम उसमें दाखिल हुए। मुझे उन गुजरे हुए दिनों के बारे में सोचकर गम होता है जो हम दोनों ने अलीगढ़ में एक-दूसरे की शिरकत से महरूम रहकर गुजार दिए। अख्तर मुझे आइंदा की बातें मालूम हो सकतीं तो सच जानो मैं तुम्हें उसी जमाने में बहुत चाहती थी। कोई कशिश तो शुरू से ही तुम्हारी जानिब खींचती थी और कोई घुलावट खुद-ब-खुद मेरे दिल में पैदा थी। मगर बताने वाला कौन था कि यह सब क्यों? आओ, मैं तुम्हारे सीने पर सिर रखकर दुनिया को मगरूर नजरों से देख सकूँगी।

अमृता प्रीतम, इमरोज और साहिर की कहानियाँ तो बहुत मशहूर हैं। इन तीनों के संबंध कितने गहरे, कितने आयामों वाले थे इनका साहित्य पढ़कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अमृता-इमरोज की प्रेम कहानी किसी दो फरिश्तोँ की प्रेम कहानियों से कम नहीं जहाँ एक दूसरे को समझने और महसूस करने की जबरदस्त संवेदनशीलता मिलेगी। एक रूहानी अहसास, प्रेम का उदात्त रूप और सपनीली आँखों में बसे सतरंगी सपने। इन्होंने एक दूसरे को कई खत लिखे लेकिन प्रतिभा कटियार यहाँ चुनिंदा प्रेम-पत्र पोस्ट करती हैं।

ये खत अमृता प्रीतम ने लिखा था इमरोज के लिए जो एक बेहतरीन इनसान होने के साथ ही बेहतरीन चित्रकार भी थे। इस पत्र में अमृता दराज में रखी रंगों की बेजुबान शीशियों के जरिये कितनी गहरी बात किस अदा से कहती हैं कि मर जाने को जी करता है। अमृता अपने इस पत्र में लिखती हैं-

मुझे अगर किसी ने समझा है तो वो तुम्हारी मेज की दराज में पड़ी हुई रंगों की बेजुबान शीशियां हैं, जिनके बदन मैं रोज पोंछती और दुलारती थी। वे रंग मेरी आँखों में देखकर मुस्कराते थे, क्योंकि उन्होंने मेरी आँखों की जर का भेद पा लिया था। उन्होंने समझ लिया था कि मुझे तुम्हारी क्रिएटिव पॉवर से ऐसी ही मुहब्बत है। वे रंग तुम्हारे हाथों के स्पर्श के लिए तरसते रहते थे और मेरी आँखें उन रंगों से उभरने वाली तस्वीरों के लिए। वे रंग तुम्हारे हाथों का स्पर्श इसलिए माँगते थे क्योंकि दे वाण्टेड टु जस्टिफाई देयर एग्जिस्टेन्स।

मैंने तुम्हारा साथ इसलिए चाहा था कि मुझे तुम्हारी कृतियों में अपने अस्तित्व के अर्थ मिलते थे। यह अर्थ मुझे अपनी कृतियों में भी मिलते थे, पर तुम्हारे साथ मिलकर यह अर्थ बहुत बड़े हो जाते थे। तुम एक दिन अपनी मेज पर काम करने लगे थे कि तुमने हाथ में ब्रश पकड़ा और पास रखी हुई रंग की शीशियों को खोला। मेरे माथे ने न जाने तुमसे क्या कहा, तुमने हाथ में लिए ब्रश पर थोड़ा-सा रंग लगाकर मेरे माथे से छुआ दिया। न जाने वह मेरे माथे की कैसी खुदगरज माँग थी...

लेकिन ऐसा नहीं है कि इनमें सिर्फ प्रेम की बातें हैं, प्रेम के ख्वाब हैं, प्रेम की इच्छाएँ हैं। कुछ पत्रों में इतनी व्यापकतर और गहरे अर्थों वाली बातें हैं जो किसी सूत्र की तरह हमारे जीवन के मर्म को बता जाता है। इसी तरह का एक प्रेम-पत्र है रिल्के का जो उन्होंने अपनी प्रेमिका कैफ्री को लिखा था। इसमें रिल्के के गहन विचार और निर्मल गद्य के दर्शन होते हैं और हम एक कवि के गद्य के जादू से रूबरू होते हैं। जर्मनी के महान कवि राइनर मारिया रिल्के ने कैफ्री को लिखा-

हमें अपने अंदर की सबसे दर्दीली जगहों के प्रति एकाग्र और सचेत रहना चाहिए क्योंकि अपने पूरे व्यक्तित्व से भी हम इस दर्द को समझ नहीं सकते। अपनी पूरी जीवन शक्ति से हर चीज को अनुभव करने के बाद भी बहुत कुछ बाकी रह जाता है और वही सबसे महत्वपूर्ण है।

एक लेखक अपनी प्रेमिका को लिखते हुए कितना सहज, भयमुक्त और आजाद महसूस करता है इसकी मिसाल है वह पत्र जो फ्रांज काफ्का ने मिलेना को लिखा था। काफ्का ने लिखा था-

आज सुबह के पत्र में मैंने जितना कुछ कहा, उससे अधिक यदि इस पत्र में नहीं कहा तो मैं झूठा ही कहलाऊँगा। कहना भी तुमसे, जिससे मैं इतनी आजादी से कुछ भी कह-सुन सकता हूँ। कभी कुछ भी सोचना नहीं पड़ता कि तुम्हें कैसा लगेगा। कोई भय नहीं। अभिव्यक्ति का ऐसा सुख भला और कहाँ है तुम्हारे सिवा मेरी मिलेना। किसी ने भी मुझे उस तरह नहीं समझा जिस तरह तुमने। न ही किसी ने जानते-बूझते और इतने मन से कभी, कहीं मेरा पक्ष लिया, जितना कि तुमने।

जाहिर है अपनी प्रेमिका को लिखते हुए एक बड़ा लेखक अभिव्यक्त का का सुख कैसे महसूस करता है। इसका एक सुंदर और मार्मिक नमूना है यह पत्र लेकिन दूसरे के प्रेम कोई प्रेमिका अपने को कितना दुःखी और असुरक्षित महसूस करती है। इसकी भी मिसालें प्रेम-पत्रों में दिखाई देती हैं। और उस दुःखद पत्र की कुछ पंक्तियाँ भी पढ़िए जो राजकुमारी वेनेसा ने लेखक जोनाथन स्विफ्ट को लिखी थीं।

स्विफ्ट अपनी गुलिवर की यात्राओं की कहानियों के लिए मशहूर हुए थे। वेनेसा लिखती हैं -मुझे अपने दिल को खाली करना पड़ेगा और अपने दु:ख तुमसे कहने पड़ेंगे, नहीं तो मैं तुम्हारी इस अजीब उपेक्षा की अकथनीय पीड़ा के नीचे घुट-घुटकर मर जाऊँगी। दस लंबे सप्ताह बीत चुके हैं, जब मैं तुमसे मिली थी और इसके बीच एक पत्र और बहानेभरी दो पंक्तियों के सिवा कुछ भी तो मुझे तुमसे नहीं मिला। आह! कैसे मुझे तुम खुद से दूर रखने के बारे में सोच भी पाते हो। मेरे शरीर के रोम-रोम से तुम्हारा प्यार छलक रहा है।

मैं तुम्हारे बिना इतनी बेचैन हूँ कि लगता है अब जी नहीं पाऊँगी। भगवान के लिए बताओ कि किस बात ने यह अजीब परिवर्तन तुममें पैदा किया है। नहीं, मत बताओ क्योंकि अगर मेरा वहम कि तुम मुझे प्यार करते हो भी अगर टूट गया तो मेरा जिंदा रहना सचमुच मुश्किल हो जाएगा। मुझे तो अब ऐसी ही जिंदगी जीने की आदत डालनी है। ओह यह क्रूर जीवन।

इसके अलावा इस ब्लॉग पर आप रानी विक्टोरिया, नेपोलियन बोनापार्ट, अब्राहम लिंकन, कवि ब्राउनिंग और विष्णु प्रभाकर के प्रेम-पत्र भी पढ़े जा सकते हैं। प्रतिभाजी ने आम आदमियों के भी दो पत्र लगाए हैं। इसके अलावा कवयित्री गगन गिल का प्रेम पर एक गद्यांश, कुछ शेर, ब्रेख्त की कविता, बद्रीनारायण की कविता और खुद प्रतिभाजी की कविताएँ पढ़ी जा सकती हैं।

ये रहा इस ब्लॉग का पता-
http://pratibhakatiyar.blogspot.com

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