अफगानिस्तान में तालिबान के आने से कैसा होगा अब राजनीतिक परिदृश्य

अफगानिस्तान में हिन्दूकुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। अफगानिस्तान की सीमा भारत, पाकिस्तान और ईरान से भी लगी हुई है। इसीलिए यह स्थान जहां रशिया और अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है वहीं चाइना की भी इस पर नजर लगी हुई है।
 
 
1. उक्त सभी देशों के लिए तालिबान एक समस्या भी है और एक समाधान भी। क्योंकि चीन जहां शिनजियांग प्रात में उइगर आतंक से जुझ रहा है वहीं रशिया चेचन्या में मुस्लिम विद्रोहियों से लड़ रहा है। सभी के पीछे तालिबान है। रशिया और चीन तालिबान से इसीलिए दोस्ती रखना चाहते हैं ताकि उनके यहां से उनका ध्यान हटा रहे और वे तालिबान और अफगानिस्तान का इस्तेमाल अपने हित पर कर सकें। परंतु भारत के लिए यह संभव नहीं जिसके कई कारण हैं।
 
2. सोवियत संघ के दौर अर्थात शीतयुद्ध के दौर में अमेरिका और रशिया की सेना के दखल से अफगानिस्तान में गृहयुद्ध शुरु हुआ था और अंतत: इस्लामिक कट्टरपंथी मुजाहिद्दीनों को अमेरिका के सहयोग से सत्ता हासिल हो गई और रशिया के सहयोगी प्रगतिशील अफगानों को देश छोड़कर जाना पड़ा। 
 
3. 1971 से 1988 तक पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी अफगानिस्तान में उलझे रहे लेकिन जब वे इससे फ्री हुए तो उन्होंने भारत के कश्मीर और पंजाब, चीन के शिनजियांग और रशिया के चेचन्या में अपनी जंग का आगाज किया। तालिबान के आने के पहले तक मुजाहिद्दीनों ने पाकिस्तान के कहने पर कश्मीर में आतंक की शुरुआत की थी।
 
 
4. 1990 में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय तब हुआ जबकि रशिया की सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। पश्तू भाषा में तालिबान को छात्र कहते हैं। पश्तून आंदोलन, धार्मिक आयोजनों और मदरसों में कट्टरपंथ की शिक्षा के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमाकर 1994 में अफगानिस्तान के राजनीतिक पटल पर उभरा। 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया। 1998 तक उसने संपूर्ण अफगानिस्तान पर कब्जा कर मुजाहिद्दीनों के मुखिया बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटा दिया। फिर शुरु हुआ आतंक का नया अध्याय। ऐसा कहा जाता है कि तालिबान को उभारने के लिए सऊदी अरब ने फंडिग की थी।
 
 
5. तालिबानियों के सहयोग से ही पाकिस्तान ने कश्मीर में खून की होली खेली और तालिबानियों के सहयोग से ही 24 दिसंबर 1999 को भारतीय विमान का अपहरण भी हुआ था। जिसके बदले में भारत को कुछ नामी आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा। 
 
6. तालिबानी राज में ही आतंक को फलने-फुलने का मौका मिला, कई नए संगठनों का गठन हुआ जिनको अलग-लग मोर्चों पर लगाया गया। भारत की जेल से रिहा हुए आतंकियों ने भी अपने आतंकी संगठन बनाकर भारत के कश्मीर में आतंक की नई इबारत लिखी। तालिबन को तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सुन्नी कट्टरपंथी संगठन है जो इस्लामिक शिक्षा और शरिया के आधार पर शासन चलाने पर जोर देता है।
 
 
7. 11 सितंबर 2001 में न्यूयॉर्क वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया का ध्यान तालिबान पर गया। हमले के मुख्‍य षड़यंत्रकारी अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को शरण देने के आरोप में तालिबान पर अमेरिका क्रोधित हुआ और उसने 7 अक्टूबर 2001 में अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और सिर्फ एक सप्ताह में ही तालिबान की सत्ता को उखाड़ फेंका। तालिबान प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर और अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने अपने यहां छुपा लिया।
 
8. 2001 से ही तालिबान और अमेरिकी सेना में जंग जारी रही। फिर तालिबान कुछ समय के लिए पीछे हटा तो अफगानिस्तान में शांती लौट आई और लोगों ने चैन की सांस ली। 
 
9. अब अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान फिर से तेजी से आगे बढ़ रहा है। कुछ क्षेत्रों में वे फिर इस्लामी शासन की कठोर व्यवस्था को लागू कर रहे हैं और बस काबुल दूर नहीं है। 
 
10. तालिबान के लौटने पर आशंका व्यक्त की जा रही है कि जहां भारत के लिए मुश्‍किलें बढ़ेंगी वहीं ईरान और पाकिस्तान में भी तालिबान का दखल बढ़ेगा। ऐसे में आने वाले समय में जहां कश्मीर में आतंक को फिर से जीवित किए जाने का प्रयास होगा वहीं चीन, ईरान और रशिया के लिए भी चुनौतियां बढ़ जाएंगी। परंतु तालिबान ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन हमारा दोस्त है।
 
 
11. उल्लेखनीय है कि भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद ने तालिबान का खूब सहयोग किया है। ऐसे में तालिबान के आने से इनकी ताकत में इजाफा होगा। इसके साथ ही हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, अल कायदा, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन को भी ताकत मिलेगी। 
 
12. अमेरिका यदि अफगानिस्तान को छोड़कर गया है तो इसमें उसका यह हित माना जा सकता है कि भविष्य में तालिबान जहां ईरान को दबाएगा वहीं पाकिस्तान पर भी दबाव बनाएगा। ऐसे में यदि ऐसा होता है तो आने वाले समय में तेजी से राजनीतिक परिदृश्य में बदलावा होगा और दक्षिण एशिया में तनाव अपने चरम पर होगा। तब अमेरिका की भूमिका फिर से महत्वपूर्ण हो जाएगी।

13. तालिबान के आने से भारत ही नहीं ईरान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान आदि कई देश चिंतित है। अब देखना होगा कि तालिबान इस बार क्या गुल खिलाता है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी