अच्छी सेहत की बात सभी करते हैं और इसके प्रति काफी हद तक जागरूकता आई भी है। फिर भी कई मामले ऐसे आते हैं जो सोचने पर विवश कर देते हैं। यह कि क्या यही चिकित्सा जगत की उपलब्धि है? रोग का या तो समय पर पता नहीं चल पाना या उसका सही तरह से उपचार नहीं होना कई लोगों को आज भी असमय काल का ग्रास बना रहा है।
रोगों को यदि होने से पहले ही रोक लिया जाए तो कई परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। 1948 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाने की जो बात कही गई वह इसलिए आवश्यक थी ताकि भविष्य को रोग मुक्त बनाया जा सके। आइए जानते हैं कुछ रोगों के निदान और उसके प्रति जागरूकता।
वर्तमान में मानसिक तनाव और डिप्रेशन, स्वस्थ और सेहतमंद जीवनशैली को बेहद प्रभावित करता है। इसका प्रभाव न केवल आपके मन व मस्तिष्क पर नकारात्मक रूप से पड़ता है, बल्कि यह आपको शारीरिक रूप से भी कमजोर कर देता है। इतना ही नहीं अपेंडिक्स, लीवर में पस होना, गैस व एसीडिटी की समस्या बढ़ रही है। अनियमित व अनियंत्रित खानपान, दूषित पानी, प्रदूषण व तनाव के कारण गैस व एसीडिटी की समस्या बढ़ती है तो लीवर संबंधित रोग अल्कोहल के सेवन से होते हैं। इनसे बचा जा सकता है।
- नियमित व्यायाम।
- कम से कम वर्ष में एक बार चेकअप।
- स्वच्छ पानी का उपयोग, घर का भोजन।
- फास्ट फूड का त्याग, वक्त पर और संयमित खाना, मोटापा कम करें।
- सोनोग्राफी से शुरुआती दौर में ही रोग का पता लगाया जा सकता है।
- प्रदूषण से नाक की एलर्जी बढ़ी है यदि ध्यान नहीं दिया जाए तो सायनस हो जाता है।
- नाक की एलर्जी अस्थमा में भी तब्दील हो सकती है अतः धूल मिट्टी या प्रदूषणयुक्त स्थान पर जाते वक्त नाक पर रूमाल या मास्क का उपयोग करें।
- बच्चों में पेट रोग जैसे कीड़े होना भी दूषित पानी की वजह से होता है।
- अल्कोहल का त्याग जरूरी, क्योंकि अल्कोहल से लीवर खराब हो जाता है और पेनक्रियाज ग्रंथी में सूजन आ जाती है।
- तंबाकू के कारण मुंह और गले का कैंसर और सिगरेट से सांस की नली का कैंसर होता है। इनका त्याग ही जीवन बचा सकता है।
निःसंतान होना :
आज महिलाओं में जो रोग बहुतायत से हो रहा है वह निःसंतानता। इसकी एक नहीं तीन प्रमुख वजह हैं।
- अधिक उम्र में विवाह होना।
- चिकित्सकीय सलाह के लिए पति-पत्नी साथ आएं।
- विवाह के बाद भी बहुत समय तक संतानोत्पत्ति रोक रखना।
- गर्भधारण में परेशानी होने पर चिकित्सकीय सलाह नहीं लेना।
- शरीर में बायलॉजिकल क्लॉक होती है जो 35 वर्ष की उम्र के बाद धीमी हो जाती है। इसी कारण इस उम्र के बाद गर्भधारण मुश्किल हो जाता है।
तनाव और डिप्रेशन :-
- तनावग्रस्त होने पर अपनी नींद का पूरा ध्यान रखें। कम से कम आठ घंटे की नींद जरूर लें।
- जब भी आपको लगे कि आप मानसिक तनाव या डिप्रेशन के शिकार हैं, अपने परिवार के लोगों या खास दोस्तों के साथ समय बिताएं और बातें करें।
- खुद को सकारात्मक बनाएं और प्रोत्साहित करें।
- सामाजिक रूप से सक्रिय रहना आपको व्यस्त भी बनाए रखेगा और तनाव के कारण की ओर से आपका ध्यान भी बंटेगा। कुछ समय में आप सकारात्मकता का अनुभव करेंगे।
- अपनी खूबियों और अब तक की उपलब्धियों की लिस्ट बनाएं या फिर कुछ अच्छा और उपयोगी कार्य करने के लिए योजना बनाएं।
- खुद से प्रेम करें और हर चीज को सकारात्मक नजरिए से देखें।
- सुबह के समय या फिर जब भी आप सहज हों हल्की धूप जरूर लें। प्राकृतिक स्थानों पर जाएं या फिर घर के आंगन, बरामदे या बालकनी में शांत मन से बैठें।
ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या :- दो समस्या सामान्य हैं। पहला हड्डी का खोखला होना (ऑस्टियोपोरोसिस) व कमर दर्द। आज भारत में 5 में से 1 पुरुष और 3 में से 1 महिला को आस्टियोपोरोसिस है।
बचने के तरीके :
- पानी खूब पिएं।
- टहलते वक्त हृदय गति 50 से 80 प्रतिशत बढ़नी चाहिए।
- तंबाकू व सिगरेट हड्डी के लिए नुकसानदायक होते हैं।
- अल्कोहल का सेवन न करें।
- दूध में कैल्शियम और अन्य ऐसे कई तत्व होते हैं जो हड्डी को मजबूत और विकसित करने में सहायक होते हैं।
- व्यायाम, सुबह की सैर व हठ योग करें ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए सुबह की धूप अच्छी होती है, अतः सुबह करीब आधा घंटा टहलें।