हज और बकरीद

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अरबी में त्याग, बलिदान और कुर्बानी का त्योहार बकरीद को ईदुल अजहा कहा जाता है। यह दिन हजरत इब्राहीम की कुर्बानियों की याद में दी जाने वाली कुर्बानी का दिन है और हज का दिन भी है।

हजरत इब्राहीम ने जब अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देनी चाही तो ऊपर से वही (ईश्वरीय वाणी) आई और इब्राहीम का हाथ रुक गया और इस्माईल की जगह एक जानवर ने ले ली। तभी से इस दिन जानवर की कुर्बानी देने का रिवाज पड़ गया। आम तौर पर लोग नहीं जानते कि ये घटना इस्लाम से बहुत पहले की है।

मोहम्मद साहब का जन्म सन 570-71 के दौरान का है और उन्हें 39 साल की उम्र में नबूवत (पैगंबरी) हासिल हुई। तभी से इस्लाम वजूद में आया। यानी सन 630 ईस्वी में इस्लाम का जन्म हुआ और हजरत इब्राहीम ईसा से करीब 3000 साल पहले पैदा हुए थे। हजरत इब्राहीम को यहूदी और ईसाई भी अपना पैगंबर मानते हैं। वहाँ इनका नाम अब्राहम है।

बाइबिल के मुताबिक हजरत नूह के बाद दसवें और आदम के बाद वह बारहवें पैगंबर थे। उनक जन्म बाबुल नामक स्थान पर हुआ लेकिन उन्होंने फिलिस्तीन को अपना ठिकाना बनाया और अंत तक वहीं रहे। इस्राइल के पिता के तौर पर भी उन्हें मान्यता हासिल है। इस्लाम भी उन्हें पैगंबरों के पिता का दर्जा देता है और ईसाई भी।

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हजरत इब्राहीम किसी भी तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते थे। उनके बारे में यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पवित्र धर्मग्रंथों में लिखा है कि वह एक बार अपने पूरे परिवार को जंगल में छोड़ आए थे। ईसाई और यहूदियों से एकदम अलग सबसे ज्यादा अहमियत उन्हें इस्लाम ने ही दी है क्योंकि उन्होंने ही काबे की बुनियाद रखी और इसका निर्माण कराया, जहाँ हज होता है।

इस्लाम के अलावा किसी भी मजहब में उनके लिए इतना बड़ा पर्व नहीं मनाया जाता है। हज और बकरीद पूरी दुनिया में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।

बताया जाता है कि एक बार पानी की सख्त किल्लत हुई थी और इब्राहीम के बेटे इस्माईल पानी के लिए तड़प रहे थे। उनकी पत्नी हजरत हाजरा ने अपने बेटे इस्माईल के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा पहाड़ियों के सात बार चक्कर लगाए लेकिन पानी नहीं मिला। सातवीं बार जब वह लौटीं तो पानी का एक सोता फूटा और बेपनाह पानी निकलने लगा। इसी का नाम 'आबे जम जम' है जिसे हज करने के बाद प्रत्येक हाजी अपने साथ लाता है।

यही वह पानी है जिसे तीनों मजहबों में पवित्र पानी का दर्जा हासिल है। हज के दौरान सफा और मरवा पहाड़ियों के तवाफ (परिक्रमा) का रिवाज भी हजरत हाजरा के पानी की तलाश में इन पहाड़ियों के जाने से पड़ा। हज के दौरान जितने भी अरकान (रस्में) अदा किए जाते हैं सभी हजरत इब्राहीम और हजरत हाजरा और हजरत इस्माईल से संबंधित हैं। हज का एक-एक अरकान हजरत इब्राहीम को श्रद्धांजलि देना है।

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