पर्यावरण दिवस पर मार्मिक कविता : हंसता हुआ आया था

Webdunia
Poem on Tree
 
-अजय अज्ञात 
 
हाथों में कुल्हाड़ी को देखा तो बहुत रोया
इक पेड़ जो घबराकर रोया तो बहुत रोया
 
जब पेड़ नहीं होंगे तो नीड़ कहां होंगे
इक डाल के पंछी ने सोचा तो बहुत रोया  
 
दम घुटता है सांसों का जियें तो जियें कैसे...
इंसान ने सेहत को खोया तो बहुत रोया
 
जाने यह मिलाते हैं क्या ज़हर सा मिट्टी में
इक खिलता बगीचा जब उजड़ा तो बहुत रोया
 
हंसता हुआ आया था जो दरिया पहाड़ों से
अज्ञात वह नगरों से गुजरा तो बहुत रोया... 

ALSO READ: विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता : वृक्ष लगाओ फिर से

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख