म्यूचुअल फंड निवेशकों के सामने अकसर यह सवाल आता है कि ग्रोथ प्लान लिया जाए या डिविडेंड प्लान? कई लोग बगैर सोचे-समझे कोई एक विकल्प चुन लेते हैं। एक निश्चित समय पर पैसा आने से लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि लांग टर्म में आपको इससे कितना नुकसान हो सकता है।
क्या होता है म्यूचुअल फंड का डिविडेंड प्लान? : जब हम किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में डिविडेंड प्लान के तहत निवेश करते हैं, तब भी कंपनियों द्वारा स्टॉक्स पर दिया जाने वाला डिविडेंड सीधे हमारे बैंक अकाउंट में नहीं आता, बल्कि उस डिविडेंड को फंड मैनेजर द्वारा उसी म्यूचुअल फंड के विभिन्न स्टॉक्स में फिर से निवेश कर दिया जाता है। लेकिन फंड मैनेजर मासिक, त्रैमासिक, छमाही और सालाना आधार पर कुल निवेश में से कुछ हिस्सा निवेशकों को रिटर्न कर देता है।
उदाहरण के लिए अगर आपके फंड की NAV 11 रुपए है और 1 रुपए डिविडेंड दिया गया, तो इससे आपकी एनएवी घटकर 10 रुपए हो जाएगी। 1 रुपया जो आपका था, वो माइनस कर आपको दे दिया गया।
फलस्वरूप लांग टर्म में मिलने वाला रिटर्न उतना नहीं मिलता जितना ग्रोथ फंड में मिलता है। इसी वजह से ग्रोथ प्लान और डिविडेंड प्लान के NAV में काफी अंतर होता है, क्योंकि निश्चित समयावधि पर डिविडेंड के रूप में म्यूचुअल फंड से निवेशकों को नकद पैसा रिटर्न कर दिया जाता है और म्यूचुअल से नकदी कम होने पर NAV कम हो जाता है।
क्या है इसका सबसे बड़ा नुकसान? : इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि जब भी आपके खाते में म्यूचुअल फंड का डिविडेंड आता है, तो यह टैक्स कटकर आता है अर्थात हर बार डिविडेंड पर आपको टैक्स देना होता है। इसके विपरीत, ग्रोथ विकल्प चुनने पर आपको तभी टैक्स देना होता है, जब आप पैसा निकालते हैं। टैक्स की वजह से ही लोग अब डिविडेंड विकल्प को चुनना पसंद नहीं करते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ? : फाइनेंशियल प्लानर रमाकांत मुजावदिया के अनुसार अब निवेशकों को डिविडेंड ऑप्शन नहीं चुनना चाहिए। ज्यादा बेटर है कि जब हमें आवश्यकता है, तो हम खुद निकालें। डिविडेंड प्लान इसलिए लिया जाता था ताकि पेंशन के रूप में कुछ न कुछ आता रहे। SIP की तरह ही SWP भी होता है। SIP में आप इन्वेस्टमेंट प्लान करते हैं जबकि SWP में विथड्रॉवल प्लान किया जाता है। पहले टैक्स फ्री हो जाता था तो फिर भी यह ठीक था, लेकिन अब यह उतना फायदेमंद नहीं है।