why indians lacking saving habits: भारत, एक ऐसा देश जहां 'बचत' को हमेशा एक संस्कार और सुरक्षा कवच माना गया है, वहां अब एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। भारतीय परिवारों की बचत दर में लगातार गिरावट आ रही है, और यह मुद्दा अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर सहित कई विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गया है। यह सिर्फ़ एक आर्थिक आंकड़ा नहीं, बल्कि समाज के बदलते उपभोग पैटर्न, वित्तीय आदतों और भविष्य की चुनौतियों का प्रतिबिंब है।
आंकड़े कर रहे हैं चिंतित
हालिया आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति स्पष्ट होती है। वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में परिवारों की शुद्ध बचत की हिस्सेदारी केवल 5.3 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा बीते 50 सालों में सबसे कम है, जो एक गंभीर संकेत है। एक दशक पहले तक, भारत की सकल घरेलू बचत दर 34.6 फीसदी थी, जो अब घटकर 29.7 प्रतिशत तक आ गई है।
सबसे बड़ा बदलाव पारंपरिक बैंक डिपॉजिट में लोगों की दिलचस्पी में आया है। बीते 9 सालों में बैंक डिपॉजिट में लोगों की कुल बचत की हिस्सेदारी 43 फीसदी से घटकर 35 फीसदी पर आ गई है। यह दर्शाता है कि लोग अब बैंकों में पैसा जमा करने के बजाय अन्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं या फिर बचत ही कम कर रहे हैं।
बचत घटने के कारण: उपभोक्तावाद से लेकर महंगाई तक
इस गिरावट के पीछे कई कारण जिम्मेदार माने जा रहे हैं: 1. बढ़ता उपभोक्तावाद और जीवनशैली में बदलाव: आज के दौर में 'अच्छा जीवन जीने' की चाहत और आधुनिक सुख-सुविधाओं की ओर बढ़ता रुझान लोगों को अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित कर रहा है। मोबाइल, टीवी, महंगी कारें, और चमक-धमक वाले घर जैसी चीजें अब आसानी से उपलब्ध हैं, और लोग भविष्य की चिंता छोड़कर इन पर खर्च कर रहे हैं। 2. महंगाई का दबाव: लगातार बढ़ती महंगाई, खासकर खाने-पीने की चीजों (जैसे तेल और फल) की कीमतों में वृद्धि, आमदनी के एक बड़े हिस्से को निगल रही है। इससे लोगों के लिए बचत करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि उनकी डिस्पोजेबल आय (खर्च करने योग्य आय) कम हो रही है। 3. आसान क्रेडिट की उपलब्धता: क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन और अन्य आसान ऋण विकल्पों की उपलब्धता ने लोगों को अपनी जरूरतों और चाहतों को पूरा करने के लिए उधार लेने के लिए प्रोत्साहित किया है। अब कुल घरेलू कर्ज का एक बड़ा हिस्सा गैर-आवासीय खुदरा ऋणों (क्रेडिट कार्ड, गोल्ड लोन) में है, जो केवल उपभोग के लिए लिया जा रहा है। 4. ब्याज दरों में कमी: पारंपरिक बचत विकल्पों, जैसे सावधि जमा (Fixed Deposits) पर कम वास्तविक ब्याज दरों ने उन्हें कम आकर्षक बना दिया है। लोग अब बेहतर रिटर्न के लिए अन्य निवेश माध्यमों की ओर रुख कर रहे हैं। 5. निवेश के नए विकल्प: लोग अब अपनी बचत को बैंक जमा के बजाय शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस और पेंशन फंड जैसे अन्य निवेश विकल्पों में लगा रहे हैं। एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि इक्विटी में घरेलू बचत की हिस्सेदारी बढ़ी है।
पैसा कहां खर्च हो रहा है?
बचत से निकला पैसा मुख्य रूप से दो जगहों पर जा रहा है: •बढ़ता उपभोग: लोग अपनी जीवनशैली को बेहतर बनाने और तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक खर्च कर रहे हैं। •भौतिक संपत्ति और अन्य निवेश: कुछ बचत रियल एस्टेट और सोने जैसी भौतिक संपत्तियों में जा रही है, जबकि एक बड़ा हिस्सा इक्विटी और म्यूचुअल फंड जैसे पूंजी बाजार के साधनों में निवेश किया जा रहा है, जहां बेहतर रिटर्न की उम्मीद होती है।
RBI गवर्नर की चिंता और इसके निहितार्थ
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्राने बैंकों में घटते डिपॉजिट पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि यदि जमा वृद्धि ऋण वृद्धि से पीछे रहती है, तो यह बैंकों के लिए तरलता (liquidity) संबंधी मुद्दे पैदा कर सकता है। यह चिंता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घरेलू बचत सरकार के बुनियादी ढांचे और पूंजी निवेश के लिए एक प्रमुख स्रोत होती है। बचत में गिरावट से सरकार की विदेशी पूंजी पर निर्भरता बढ़ सकती है।
यह प्रवृत्ति एक आर्थिक तूफान की चेतावनी भी हो सकती है यदि घरेलू कर्ज जीडीपी के 60% से ऊपर पहुंच जाए, जिससे आर्थिक विकास दर प्रभावित हो सकती है और ऋण डिफॉल्ट का खतरा बढ़ सकता है।
संतुलन की आवश्यकता
बचत की आदत में गिरावट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक दोधारी तलवार है। एक ओर, यह बढ़ती खपत और निवेश के नए अवसरों को दर्शाता है, लेकिन दूसरी ओर, यह व्यक्तिगत वित्तीय सुरक्षा और व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए जोखिम भी पैदा करता है। यह आवश्यक है कि सरकार, आरबीआई और नागरिकों के बीच एक संतुलन स्थापित हो। लोगों को वित्तीय साक्षरता के माध्यम से बचत के महत्व और सही निवेश विकल्पों के बारे में जागरूक करना होगा, जबकि सरकार और नियामक निकायों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो बचत को प्रोत्साहित करें और वित्तीय स्थिरता बनाए रखें। 'बचत' केवल एक व्यक्तिगत आदत नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की आर्थिक रीढ़ है, जिसे मजबूत रखना अत्यंत आवश्यक है।