अकेलेपन को दूर कर बनाएँ कुछ अच्छे दोस्त

गरिमा माहेश्वर

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हर किसी के जीवन में कभी ना कभी कुछ ऐसे पल आते हैं जब वो अपने आप को हज़ारों लोगों के बीच में रहकर भी अकेला पाता है। अपने दफ्तर में या किसी पार्टी में भी उसे यही महसूस होता है कि वह कितना अकेला है। वह व्यक्ति अपने इस अकेलेपन का ज़िम्मेदार उन लोगों को मानने लगता है जो उससे बात नहीं करते या उसके दोस्त नहीं बनना चाहते।

लेकिन असलियत तो यह है कि अपके इस दुख और अकेलेपन का कारण कोई और नहीं बल्कि आप खुद हैं। आपने अपने आपको इतनी सीमाओं और संकोचों में घेर रखा है कि कोई इन सीमाओं को पार करके आप तक पहुँच ही नहीं सकता। दोस्त बनाना बहुत ही आसान है,अगर आप संकोच छोड़कर दोस्त बनाने कि कोशिश करेंगे तो निश्चित ही सफलता मिलेगी।

चलिए तो आज जानते हैं कुछ ऐसे सरल परिवर्तनों के बारे में जिन्हें अपनाकर हम दोस्त बनाने कि इस कोशिश में कामयाब हो सकते हैं-
आपके व्यक्तित्व की पहली झलक - अगर आपके सामने एक ऐसा व्यक्ति आकर खड़ा हो जाए जिसने ना तो ठीक ढंग से कपड़े पहने हों और ना ही वो आपसे सही तरीके से बात कर रहा हो !तो ज़ाहिर सी बात है कि आप उससे बात करना तो दूर उसकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करेंगे। यही बात आप पर भी लागू होती है,अगर आपका व्यक्तित्व प्रभावकारी नहीं है तो कोई आपसे बात करने आगे नहीं आएगा। दूसरी ओर अगर आप अपनी उपस्थिति का एहसास कराना चाहते हैं तो अपने व्यक्तित्व को चित्ताकर्षी बनाएँ।

विनम्रता एक महत्वपूर्ण गुण - विनम्रता एक ऐसा गुण है जो सभी को भाता है,एक ऐसा गुण जो किसी पर भी अपना प्रभाव आसानी से डाल सकता है। विनम्रता दोस्ती की शुरूआत करने के लिए पहली सीढ़ी है। कहते हैं कि ‘’कुछ पाने के लिए कुछ देना भी ज़रूरी है’’ और दोस्ती के लिए दूसरों को सम्मान देना सबसे महत्वपूर्ण है।

सहर्षता को अपनाएँ - मुस्कुराहट एक ऐसी चीज़ है,जिससे किसी भी इंसान का दु:ख दूर किया जा सकता है। हँस्ता-मुस्कुराता चेहरा सभी को लुभाता है। आपकी एक मुस्कुराहट आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा सकती है। यह प्रभावकारी व्यक्तित्व चुम्बकीय तत्व की तरह लोगों को आपकी ओर आकर्षित करने में आपकी मदद करेगा।

इन सभी बातों के साथ आपको एक और बात का खास ध्यान रखना पढ़ेगा। आपको अपने नए दोस्तों की बातों में रूची भी लेनी होगी।
दोस्ती का यह रिशता दोनों तरफ से निभाने से ही चलता है। इस रिशते में कड़वाहट आने का मुख्य कारण भी यही होता है।

दोस्ती के इस रिशते को अपना मतलब पूरा करने का ज़रिया समझना एक बहुत बड़ी गलती है। इसका एहसास तब होता है जब सच में एक सच्चे दोस्त की ज़रूरत होती है और तब हम अपने आप को अकेला पाते हैं। शायद इसलिए यह कया गया है कि ‘’सच्चे दोस्त ही आपकी असली पूँजी होते हैं’’ बाकी सुख सुविधाएँ तो आज है,कल नहीं। इसलिए अपनी इस अनमोल धरोहर को संभाल के रखें।