इस कथा के अनुसार- एक बार भगवान श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थयात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा, जो तपस्या में विलीन थे।
एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने श्री गणेश से माफी मांगी। तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर राक्षस से होगा। किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होंगी, पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा। तबसे ही भगवान गणेशजी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है। अत: भगवान श्री गणेश को तुलसी (tulsi) नहीं चढ़ाई जाती है।