गणेश जी के 12 प्रसिद्ध अवतार

WD Feature Desk

शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 (15:44 IST)
ganesh ji ke 12 naam: जिस तरह शिव और विष्णु के अवतार हुए हैं उसी तरह गणेशजी के भी कई अवतार हुए हैं। पुराणों में शिवपुत्र गणेशजी के 64 अवतारों का उल्लेख मिलते हैं। गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। आओ जानते हैं उनके 12 प्रमुख नामों को 12 अवतारों के रूप में माना जाता है।
 
गणेशजी के 12 प्रमुख अवतारों के नाम:-
सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है।
 
गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
विनायकश्चारुकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।।
विश्वं तस्य भवे नित्यं न च विघ्नमं भवेद् क्वचिद्।

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1. सुमुख- इसका अर्थ है सुन्दर मुख वाले गणेशजी। इस रूप में उनका चेहरा सूर्य की तरह चमकदार और चंद्रमा की तरह गौरवर्ण बताया गया है। उनका यह अवतार चंद्रमा के सभी प्रमुख विशेषताओं के साथ जीवन के लिए आया था, और इसलिए नाम सुमुख दिया गया था।
 
2. एकदन्त- भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है। पहरेदार गणेशजी ने एक बार परशुराम को कैलाश जाने से रोक दिया था। परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे से उनका दांत तोड़ दिया था। तभी से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं।
 
3. कपिल- जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता है। कपिला गाय का रंग जैसा था। इसी प्रकार भगवान गणेश के रूप में ज्ञान और दूध के रूप में ज्ञान के रूप में दही घी देता है वह रंग में ग्रे है, हालांकि आदि घी दूध, दही, जैसे उत्पा चिंताओं को दूर कर देता है। इसलिए उसका नाम कपिल है। 
 
4.गजकर्णक- गज यानी आथी और कर्ण यानी काम। हाथी के कान वाले। लंबे कान वालों को भाग्यशाली भी कहा जाता है। श्री गणेश तो भाग्य विधाता और शुभ फल दाता हैं। गणेश जी के कानों से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए।
 
5. लम्बोदर- लम्बे उदर यानी पेटला- भगवान् श्री गणेश का लम्बोदर अवतार सत्स्वरूप तथा ब्रह्मशक्ति का धारक है, भगवान लम्बोदर को क्रोधासुर का वध करने वाला तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा जाता है। लंबोदर की कथा भगवान विष्णु के मोहिनी रुप और शिव के पुत्र क्रोधासुर से जुड़ी है। लम्बोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण संग्राम हुआ अंत में क्रोधासुर हरकर वचनानुसार पाताल लोग चला गया।
 
6. विकट- उन्होंने यह अवतार कामासुर के संहार के लिए लिया था। कहते हैं कि भगवान विष्णु जब जालंधर के वध के लिए वृन्दा का तप नष्ट करने गए तभी उसी समय उनके शुक्र से अत्यंत तेजस्वी दैत्य कामासुर पैदा हुआ। कामासुर से इंद्र आदि देव भी उसके पराक्रम से घबरा कर हार गए। तब देवताओं ने मयूरवाहन गणेश की उपासना की। भगवान विकट रूप में प्रकट हुए और कामासुर से उनका घोर संग्राम हुआ। आखिर कामासुर ने हार मान ली और उसने भगवान विकट से क्षमा मांगी।
 
7. विघ्ननाशक- इसका अर्था है विघ्नों यानी संकटों का नाश करने वाले। विघ्नेश्वर नामक एक दैत्य का वध करने के कारण ही इसका नाम विघ्ननाश हुआ। एक अन्य कथानुसार अभयदान मांगते समय विघनसुर दैत्य की प्रार्थना थी कि गणेशजी के नाम के पहले उसका भी नाम लिया जाए, इसलिए गणपति को विघ्नहर्ता या विघ्नेश्वर का नाम यहीं से मिला।
 
8.विनायक- इसका अर्थ है विशिष्ट नायक। सिद्धि विनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्धपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्ध विनायक मंदिर कहलाते हैं। सिद्धि विनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। उनकी इस रूप में उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं। 
 
9. धूम्रकेतु:- धुएं के से वर्ण की ध्वजा वाले। भविष्य पुराण के अनुसार इस नाम से गणेश का अवतार कलयगु में होगा जो अनर्थकारी शक्तियों को नष्ट कर देगा। इन गणेश को एक भयंकर रूप माना जाता है और वह एक नीले घोड़े पर सवारी करेंगे।
 
10. गणाध्यक्ष- गणों के स्वामी होने के कारण गणाध्यक्ष उनका दसवां अवतार है। इसीलिए उन्हें गणपति भी कहा जाता है। अर्थात गणों के पति। 
 
11. भालचन्द्र- मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले। श्रीगणेश के इस नाम में सफल जीवन का अहम सूत्र है। चूंकि शास्त्रों में चंद्रमा को सभी जीवों के मन का नियंत्रक माना गया है, तो वहीं गणेश बुद्धि दाता हैं। मस्तक भी बुद्धि केन्द्र है। श्रीगणेश ने मस्तक पर ही चन्द्र को धारण किया है। चन्द्र की प्रकृति शीतल व शांत होती है। इस तरह संकेत है कि सफलता और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मन-मस्तिष्क को शांत रख बुरी और नकारात्मक सोच से बचा जाए।  
 
12. गजानन- गज यानी हाथी। हाथी के मुख वाले। लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने तथास्तु कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। इसी रूप में उनके मस्तक की कथा भी है।
 
मुद्गल पुराण के अनुसार भगवान गणेश ने 8 अवतार बताए गए हैं:- 
1. वक्रतुंड: घुमाती हुई सूंड वाले
2. एकदंत: एक दांत वाले
3. महोदर: बड़ा पेट वाले
4. गजानन: हाथी के मुख वाले
5. लंबोदर: लटकते हुए पेट वाले
6. विकट: असाधारण रूप वाले
7. विघ्नराज: बाधाओं के राजा
8. धूम्रवर्ण: धूम्र वर्ण (धूसर रंग) वाले
 
1. महोत्कट विनायक: इन्हें सतयुग में कश्यप व अदिति ने जन्म दिया। इस अवतार में गणपति ने देवतान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की व अपने अवतार की समाप्ति की।
 
2. गुणेश: त्रेतायुग में गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्म लिया व उन्हें 'गुणेश' नाम दिया गया। इस अवतार में गणपति ने सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया व ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया।
 
3. गणेश: द्वापर युग में गणपति ने पुनः पार्वती के गर्भ से जन्म लिया व गणेश कहलाए, परंतु गणेश जन्म से ही कुरूप थे, इसलिए पार्वती ने उन्हें जंगल में छोड़ दिया, जहाँ पर पराशर मुनि ने उनका पालन-पोषण किया। गणेश ने सिंदुरासुर का वध कर उसके द्वारा कैद किए अनेक राजाओं व वीरों को मुक्त किया। इसी अवतार में गणेश ने वरेण्य नामक अपने भक्त को गणेश गीता के रूप में शाश्वत तत्व ज्ञान का उपदेश दिया।
 
4. धूम्रवर्ण: कहते हैं कि गणेशजी कलिकाल में घोड़े पर सवार होकर आएंगे। कहते हैं कि श्रीगणेशजी कलियुग के अंत में अवतार लेंगे। इस युग में उनका नाम धूम्रवर्ण या शूर्पकर्ण होगा। वे देवदत्त नाम के नीले रंग के घोड़े पर चारभुजा से युक्त होकर सवार होंगे और उनके हाथ में खड्ग होगा। वे अपनी सेना के द्वारा पापियों का नाश करेंगे और सतयुग का सूत्रपात करेंगे। इस दौरान वे कल्कि अवतार का साथ देंगे।

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