आपने अक्सर अपने पेरेंट्स के साथ 'बाग़बान' फिल्म तो देखि ही होगी। उस मूवी को देखने के बाद हर पेरेंट्स कुछ मिनट के लिए अपने आप को उस परिस्थिति में इमेजिन कर लेते हैं। रियल लाइफ में देखा जाए तो हम अपने पेरेंट्स से काफी प्यार करते है। हां, आपमें से कई लोग इतने एक्सप्रेसिव (expressive) नहीं होते हैं पर प्यार तो बहुत करते हैं। पेरेंट्स हमारी ज़िंदगी का ऐसा हिस्सा हैं जिनके बिना हमारी ज़िंदगी अधूरी है। भारतीय सभ्यता में माता-पिता को भगवान के रूप में माना जाता है। दरअसल, हमारे माता-पिता भगवान से कम भी नहीं हैं क्योंकि हमारी खुशी के लिए वो हर तरह के प्रयास करते हैं। पेरेंट्स के इन्हीं महत्व को ध्यान में रखते हुए हर साल 1 जून को ग्लोबल डे ऑफ पेरेंट्स (global day of parents) मनाया जाता है। चलिए जानते हैं इस दिवस के बारे में.......
क्या है ग्लोबल डे ऑफ पेरेंट्स का इतिहास?
1980 के दशक के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने परिवार से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना शुरू किया। 1983 में इकनोमिक एंड सोशल कौंसिल ने सुझाव दिया कि इंटरनेशनल कम्युनिटी द्वारा परिवार के विकास और उनकी समस्या के समाधान पर ध्यान देने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1994 को international year of the family घोषित किया गया था। साथ ही 15 मई को हर साल international day of families दिवस मनाने की घोषणा की। इसके बाद 2012 में सभी पेरेंट्स को सम्मान देने के लिए 1 जून को ग्लोबल डे ऑफ पेरेंट्स मनाने का फैसला लिया गया।
ग्लोबल डे ऑफ पेरेंट्स पर विचार
'जिसके होने से मैं खुदको मुकम्मल मानता हूं, भगवान के बाद मैं सिर्फ अपने माता-पिता को जानता हूं।'
'माता-पिता का दिल जीत लो कामयाब हो जाओगे, वरना सारी दुनिया जीत कर भी हार जाओगे।'
'माता-पिता हमेशा हमें वो देते हैं जो उनके पास नहीं होता।'
'माता-पिता उम्र से नहीं, फिक्र से बूढ़े होते हैं।'
'नोटों से तो ज़रूरत पूरी होती है, मज़ा तो पापा से मांगे हुए एक रुपए के सिक्के में था।'