शुभ विक्रम नवसंवत्सर आरंभ

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संसार की उत्पत्ति के साथ ही परिवर्तन जुड़ा हुआ है। सृष्टि के रचियता ने भी समय-समय पर विष्णुजी द्वारा सृष्टि की रचना का आदेश ब्रह्माजी को मिला और उन्होंने सृष्‍टि की रचना की।

समय के साथ युग परिवर्तन हुआ, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग एवं राजा परीक्षित के शरण में याचक बनकर कलयुग में प्रवेश किया।

कलयुग की अवधि प्रारंभ से 5112 वर्ष पूर्ण कर चुकी है। पिछला वर्ष 2067 शक 1933 व्यतीत योग हो गया है।

नया वर्ष विक्रम संवत 2068, शालिवाहन शक 1933 ईसवी सन 2011-2012, हिजरी सन 1432-33 फसली सन 1418-19 बंगला सन 1892 मेष संक्रांति से प्रारंभ होगा।

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प्रत्येक मनुष्य ने संवत्सर के प्रारंभ के दिन प्रात:काल उठकर स्नान करके मकान को स्वच्छ करके केले के खंभे, वंदनवार, पताका आदि सुशोभित करना चाहिए। पूरे कुटुंब सहित नवीन वस्त्र धारण करके अपने इष्‍ट देवता का पूजन करना चाहिए तथा पंचांग का पूजन करना चाहिए।

संवत्सर फल (पूरे साल का फलादेश) का श्रवण करना चाहिए। इसके बाद काली मिर्च, नीम की पत्ती, मिश्री, अजवाइन व जीरा का चूर्ण बनाकर खाना चाहिए।

इस दिन अपने से बड़ों का गुरु, माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेना चाहिए। साथ ही मन में संकल्प लेना चाहिए कि हम अच्छे मार्ग पर चलते हुए प्रभु स्मरण करते रहे और हमारा नववर्ष सुखमय रहे।

इसी दिन से माँ भगवती राज राजेश्वरी दुर्गा देवी के दिन यानी नवरात्रि प्रारंभ हो जाती है। अत: माता की आराधना नौ दिनों तक करनी चाहिए। जो नवदुर्गा के नौ रूपों का स्मरण करता है, वह पूर्ण आनंद एवं सुखमय जीवन व्यतीत करता है। उसको अकाल मृत्यु (दुर्घटना, आग से जलना अथवा साँप के काटने से) नहीं आती है। उन भक्तों को भगवती अपने शरण में ले लेती है।

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