गुजरात चुनाव : इन 25 प्रमुख सीटों पर रहेंगी सबकी नजरें

Webdunia
गुरुवार, 3 नवंबर 2022 (18:30 IST)
अहमदाबाद। गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए 2 चरणों में, 1 और 5 दिसंबर को मतदान होगा और मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी। इस पश्चिमी प्रदेश की कुल 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहले चरण में 89 सीटों पर और दूसरे चरण में 93 सीटों पर मतदान होगा। इस चुनाव में निम्नलिखित 25 प्रमुख सीटों पर लोगों की खास निगाहें रहेंगी :

1. मणिनगर : अहमदाबाद जिले की यह शहरी विधानसभा सीट 1990 के दशक से भारतीय जनता पार्टी की गढ़ रही है। यहां हिन्दू मतदाताओं की बहुलता है। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी ने 2002, 2007 और 2017 के चुनावों में इसी सीट से जीत दर्ज की थी। इस सीट से वर्तमान में भाजपा के सुरेश पटेल विधायक हैं।

2. घाटलोदिया : यह अहमदाबाद की एक अन्य शहरी सीट है। इस सीट पर पाटीदार मतदाताओं की खासी संख्या है और इसने राज्य को दो मुख्यमंत्री दिए हैं। वे हैं आनंदी बेन पटेल और भूपेंद्र पटेल। आनंदी बेन पटेल के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद भाजपा ने 2017 में भूपेंद्र पटेल को इस सीट से उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने इस सीट पर 1.17 लाख मतों के अंतर से जीत हासिल की थी वह भी तब जबकि हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन चरम पर था और पाटीदार युवाओं में भारी नाराजगी देखी गई थी।

3. मोरबी : हाल ही में पुल ढहने से 135 लोगों की यहां मौत हो गई थी, जिसकी वजह से पाटीदार बहुल यह निर्वाचन क्षेत्र सुर्खियों में है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के कारण पिछली बार यहां भाजपा के पांच बार के विधायक कांती अमृतिया को कांग्रेस के ब्रिजेश मेरजा के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2020 में मेरजा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। वह वर्तमान सरकार में राज्यमंत्री हैं। इस बार यह देखना रोचक होगा कि मोरबी के मतदाता चुनाव में क्या रुख अपनाते हैं।
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4. राजकोट पूर्व : अक्टूबर 2001 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने फरवरी 2002 में इस सीट से जीत हासिल की थी। भाजपा के दिग्गज नेता वजुभाई वाला ने 1980 से 2007 के बीच 6 बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने 2002 में मोदी के लिए इसे खाली कर दिया था। साल 2017 का चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया था क्योंकि राजकोट-पूर्व से तत्कालीन कांग्रेस विधायक इंद्रनील राजगुरु ने घोषणा की थी कि वह अपनी 'सुरक्षित सीट' से चुनाव लड़ने के बजाय विजय रूपाणी का मुकाबला करेंगे। हालांकि राजगुरु चुनाव हार गए। हाल ही में वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए।
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5. गांधीनगर उत्तर : गुजरात की राजधानी गांधीनगर शहर में कोई विशिष्ट जाति समीकरण नहीं है क्योंकि इसके अधिकांश निवासी राज्य सरकार के कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य हैं। गांधीनगर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया था। साल 2012 में भाजपा के अशोक पटेल ने 4000 से अधिक वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी। साल 2017 में कांग्रेस नेता सीजे चावड़ा ने पटेल को करीब 4700 वोटों से हराया था।
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6. अमरेली : गुजरात के पहले मुख्यमंत्री जीवराज मेहता 1962 में सौराष्ट्र क्षेत्र के इस अमरेली से ही चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। साल 1985 से 2002 तक हुए यहां के विधानसभा चुनावों में भाजपा के उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की। साल 2002 में कांग्रेस के परेश धनानी ने एक बड़ा उलटफेर करते हुए यह सीट भाजपा से छीन ली। उन्हें 2007 में भाजपा के दिलीप संघानी ने हरा दिया, लेकिन धनानी ने 2012 में बदला लेते हुए यह सीट वापस जीत ली। साल 2017 में वे फिर से यहां से निर्वाचित हुए।
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7. पोरबंदर : मेर और कोली मतदाताओं के प्रभुत्व वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में लंबे समय से भाजपा के बाबू बोखिरिया और कांग्रेस के अर्जुन मोढवाडिया के बीच प्रतिद्वंद्विता देखी जाती रही है। 2017 में बोखिरिया ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोढवाडिया को 1855 मतों के मामूली अंतर से हराया था।
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8. कुटियाना : यह गुजरात की एकमात्र सीट है जिस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा है। कथित गैंगस्टर दिवंगत संतोकबेन जडेजा के बेटे कंधाल जडेजा ने 2012 और 2017 में यहां से भाजपा को हराया था। उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों को वोट दिया था और बाद में राकांपा नेतृत्व ने उन्हें नोटिस जारी किया था।
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9. गोंडल : पटेल और राजपूत समुदायों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के लिए प्रसिद्ध यह सीट वर्तमान में भाजपा के पास है। पिछले चुनाव में भाजपा की गीताबेन जडेजा ने यहां से जीत दर्ज की थी। वह एक राजपूत और पूर्व विधायक और स्थानीय बाहुबली जयराज सिंह जडेजा की पत्नी हैं, जो हत्या के एक मामले में जमानत पर बाहर हैं।
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10. मेहसाणा : यह पाटीदार बहुल सीट है। वर्ष 1990 से यह भाजपा का गढ़ बना हुआ है। भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने 2012 और 2017 में यहां से जीत हासिल की थी। मेहसाणा शहर में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसक प्रदर्शन हुए थे। नतीजतन, पटेल की जीत का अंतर पिछली बार 7100 से थोड़ा अधिक था।
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11. वराछा : यह सूरत जिले की पाटीदार बहुल सीट है। पिछले चुनाव से पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान यहां भी हिंसा देखी गई थी। गुजरात के पूर्व मंत्री किशोर कनानी 2012 में यहां से भाजपा के टिकट पर जीते थे और 2017 में इसे बरकरार रखने में कामयाब रहे थे।
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12. झगाड़िया : भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटू बसावा इस जनजातीय बहुल सीट से 1990 से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। हाल में उन्होंने आम आदमी पार्टी से संबंध तोड़ लिए थे। इस पार्टी का प्रभुत्व देडियापारा सीट पर भी है।
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13. आणंद : आणंद में पटेल और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं की मिश्रित जनसंख्या है। इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। पिछले चुनाव में कांति सोढ़ा परमार ने यहां से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में और 2014 के उपचुनाव में उन्हें भाजपा उम्मीदवारों के हाथों पराजय झेलनी पड़ी थी। हालांकि 2017 में उन्होंने जीत दर्ज की।
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14. पावी जेतपुर अनुसूचित (जनजाति) : छोटा उदयपुर जिले की इस आरक्षित सीट पर वर्तमान में विपक्ष के नेता सुखराम राठवा का कब्जा है। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी।

15. जसदण : इस सीट पर वर्तमान में राज्य के सबसे कद्दावर कोली नेताओं में शुमार भाजपा के कुंवरजी बावलिया का कब्जा है। बावलिया 5 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2017 में कांग्रेस के टिकट पर जीतने के बाद उन्होंने पाला बदल लिया था।
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16. दरियापुर : अहमदाबाद शहर में यह एक मुस्लिम बहुल सीट है, जो 2012 में अस्तित्व में आई थी। तब से कांग्रेस के गयासुद्दीन शेख यहां से जीतते आ रहे हैं। एआईएमआईएम के मैदान में उतरने के साथ ही भाजपा, कांग्रेस, आप और एआईएमआईएम के बीच यहां चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है।
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17. जमालपुर खड़िया : यह अहमदाबाद की मुस्लिम बहुल सीट है। यह भी 2012 में अस्तित्व में आई थी। उस चुनाव में कांग्रेस और एक निर्दलीय उम्मीदवार साबिर काबलीवाला के बीच मुसलमान मतों के विभाजन के कारण भाजपा ने यहां से जीत हासिल की थी। काबलीवाला अब एआईएमआईएम की गुजरात इकाई के अध्यक्ष हैं। 2017 में इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस बार एआईएमआईएम काबलीवाला को मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस के लिए यह मुसीबत का संकेत माना जा रहा है।

18. छोटा उदयपुर (अनुसूचित जनजाति) : कांग्रेस के दिग्गज नेता और 11 बार के विधायक मोहन सिंह राठवा 2012 से यहां से जीतते आ रहे हैं। अब राठवा ने संन्यास का ऐलान कर दिया है। वे अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद नारन राठवा भी अपने बेटे के लिए टिकट पाने की जुगत में हैं।

19. भरूच : मुसलमान मतदाताओं की बड़ी संख्या के कारण यह सीट सबकी नजरों में रहती है। हालांकि इसके बावजूद भाजपा 1990 से यहां से जीतती आ रही है।

20. गोधरा : बड़ी मुस्लिम आबादी वाली यह एक और सीट है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीके राउलजी ने यहां से 2007 और 2012 में जीत हासिल की थी। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। साल 2017 में कांग्रेस के खिलाफ उन्होंने 258 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की।

21. भावनगर ग्रामीण : भाजपा के कद्दावर नेता और कोली नेता पुरुषोत्तम सोलंकी 2012 से यहां से जीत दर्ज करते आ रहे हैं। तबीयत खराब होने की वजह से भाजपा उन्हें मैदान में उतारने से परहेज कर सकती है।

22. वडगाम : युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने 2017 के चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से यहां से जीत हासिल की थी।

23. ऊंझा : मोदी का गृहनगर मेहसाणा जिले का वडनगर इसी निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र कड़वा-पाटीदार समुदाय की संरक्षक देवी मां उमिया के मंदिर उमियाधाम के लिए प्रसिद्ध है। 2017 में एक बड़े उलटफेर में कांग्रेस की आशा पटेल ने भाजपा के नारायण पटेल को हराया था। वह बाद में भाजपा में शामिल हो गईं और 2019 में उपचुनाव जीता। डेंगू से उनकी मौत के बाद दिसंबर 2021 में यह सीट खाली हो गई थी।

24. राधनपुर : ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने 2017 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर वे भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में वे कांग्रेस के रघु देसाई से हार गए थे। बताया जा रहा है कि स्थानीय भाजपा नेता उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं।

25. लिंबायत : भाजपा की संगीता पाटिल 2012 से यहां से जीतती आ रही हैं। यह सीट गुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल के नवसारी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है और संगीता पाटिल ने लिंबायत में अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू करने की मांग की है।(भाषा)
Edited by : Chetan Gour

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