पुराणों से जानिए गुरु दक्षिणा का महत्व, कब और कैसे दी जाती है Guru Dakshina

Webdunia
Guru Dakshina
 
 
हिंदू धर्म में गुरु दक्षिणा का महत्व बहुत अधिक माना गया है। गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब अंत में शिष्य अपने घर जाता है तब उसे गुरु दक्षिणा देनी होती है। गुरु दक्षिणा का अर्थ कोई धन-दौलत से नहीं है। यह गुरु के ऊपर निर्भर है कि वह अपने शिष्य से किस प्रकार की गुरु दक्षिणा की मांग करे।
 
गुरु अपने शिष्य की परीक्षा के रूप में भी कई बार गुरु दक्षिणा मांग लेता है। कई बार गुरु दक्षिणा में शिष्य ने गुरु को वही दिया जो गुरु ने चाहा। गुरु के आदेश का पालन करना शिष्य के जीवन का परम कर्तव्य बन जाता है और कई बार तो यह जीवन-मरण का प्रश्न भी बना है।
 
गुरु दक्षिणा गुरु के प्रति सम्मान व समर्पण भाव है। गुरु के प्रति सही दक्षिणा यही है कि गुरु अब चाहता है कि तुम खुद गुरु बनो। मूलतः गुरु दक्षिणा का अर्थ शिष्य की परीक्षा के संदर्भ में भी लिया जाता है।

गुरु दक्षिणा उस वक्त दी जाती है या गुरु उस वक्त दक्षिणा लेता है जब शिष्य में संपूर्णता आ जाती है। अर्थात् जब शिष्य गुरु होने लायक स्थिति में होता है। गुरु के पास का समग्र ज्ञान जब शिष्य ग्रहण कर लेता है और जब गुरु के पास कुछ भी देने के लिए शेष नहीं रह जाता तब गुरु दक्षिणा सार्थक होती है।
 
अर्जुन और द्रोणाचार्य :- द्रोणाचार्य को युद्ध भूमि में जब अर्जुन ने अपने सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा तो उसने युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया। यह अर्जुन के शिष्य के रूप में द्रोणाचार्य के प्रति प्रेम व सम्मान का भाव था। 
 
एकलव्य की गुरु दक्षिणा:- इसी प्रकार जब एकलव्य से गुरु द्रोणाचार्य ने प्रश्न किया कि तुम्हारा गुरु कौन है, तब उसने कहा- गुरुदेव आप ही मेरे गुरु हैं और आपकी ही कृपा से आपकी मूर्ति को गुरु मानकर मैंने धनुर्विद्या सीखी है। तब द्रोणाचार्य ने कहा- पुत्र तब तो तुमको मुझे दक्षिणा देना होगी। 
 
एकलव्य ने कहा- गुरुदेव आप आदेश तो करें मैं दक्षिणा देने के लिए तैयार हूं। तब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा। एकलव्य ने सहर्ष अपना अंगूठा काटकर गुरु के चरणों में रख दिया। इससे एकलव्य का अहित नहीं हुआ, बल्कि एकलव्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और वह एक इतिहास पुरुष बन गया। गुरु का प्रेम दिखने में कठोर होता है, किंतु इससे शिष्य का जरा भी अहित नहीं होता।
 
गुरु का पूरा जीवन अपने शिष्य को योग्य अधिकारी बनाने में लगता है। गुरु तो अपना कर्तव्य पूरा कर देता है, मगर दूसरा कर्तव्य शिष्य का है वह है- गुरु दक्षिणा। 
 
विवेकानंद और शिवाजी महाराज की गुरु दक्षिणा:- विवेकानंद ने अपने गुरु के आदेश से पूरे विश्व में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। छत्रपति शिवाजी अपने गुरु के आदेशानुसार शेरनी का दूध निकालकर ले आए और गुरु दक्षिणा के रूप में पूरे महाराष्ट्र को जीतकर अपने गुरु के चरणों में रख दिया था।
 
कृष्ण व बलदेव की गुरु दक्षिणा :- कृष्ण व बलदेव ने सांदीपनि के आश्रम में कुछ ही महीनों में समस्त प्रकार की विद्या ग्रहण कर शिक्षा समाप्त कर दी। इसके अनंतर गुरु दक्षिणा देने की बारी आई। 
 
गुरु ने कृष्ण से बहुत दिन पहले उनके पुत्र को समुद्र में एक मगर निगल गया था, उसी को ला देने की बात कही। कृष्ण ने अपने गुरु को पुत्र के लिए आर्त्त देखकर उनका पुत्र ला देने की प्रतिज्ञा की और कृष्ण-बलराम ने यमपुर जाकर यमराज से उनके पुत्र को वापस लाकर दिया।
 
अंगुलिमान डाकू:- यह बुद्ध का ही असर था कि अंगुलिमान जैसा क्रूर डाकू भी भिक्षु बन गया। ऐसा होता है गुरु का सामर्थ्य। 
 
जिस प्रकार चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को, समर्थ रामदास ने छत्रपति शिवाजी को और रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को खोजा था उसी प्रकार अगर आप योग्य शिष्य हैं तो आपको गुरु ढूंढने की जरूरत नहीं। गुरु स्वयं ही ढूंढ लेंगे।
 
आप तैयार रहें दक्षिणा देने के लिए। अर्थात अपने समस्त अहंकार, घमंड, ज्ञान, अज्ञान, पद व शक्ति, अभिमान सभी गुरु के चरणों में अर्पित कर दें। यही सच्ची गुरु दक्षिणा होगी। 

ALSO READ: Guru Purnima Aarti : गुरु पूर्णिमा की आरती

ALSO READ: guru purnima 2020 : अगर आपके सिर पर नहीं है गुरु की छांव तो जानिए किसे बनाएं अपना गुरु, कैसे करें पूजन

सम्बंधित जानकारी