बिना दवा के अस्थमा कंट्रोल करने के लिए अपनाएं ये ब्रीदिंग एक्सरसाइज, डॉक्टर भी देते हैं सलाह

WD Feature Desk

शनिवार, 3 मई 2025 (13:07 IST)
breathing exercises and technique for asthma patients in hindi: आज की तेज रफ्तार जिंदगी में सांसों की अहमियत हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन जब बात अस्थमा जैसी क्रॉनिक बीमारी की हो, तो यह सच सामने आता है कि हमारी सांसें ही हमारे जीवन की असली धड़कन हैं। अस्थमा, जिसे हिंदी में दमा कहा जाता है, एक ऐसा रोग है जो रस्पैट्ररी सिस्टम को प्रभावित करता है और रोगी को बार-बार सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यह बीमारी एलर्जी, पॉलुशन, मौसम में बदलाव और इमोशनल स्ट्रेस जैसे कई कारणों से उभर सकती है। हालांकि दवाइयां अस्थमा को कंट्रोल करने का मुख्य जरिया हैं, लेकिन हाल के वर्षों में ब्रीदिंग एक्सरसाइज (सांस लेने की तकनीकों) को बेहद प्रभावी पाया गया है।
 
रेस्पिरेशन की इन तकनीकों के जरिए ना केवल फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि सांस फूलने की तीव्रता को भी घटाया जा सकता है। यह लेख खासतौर पर उन अस्थमा पेशेंट्स के लिए है जो दवाइयों के साथ-साथ नैचुरल और होलिस्टिक तरीकों से भी राहत पाना चाहते हैं। आइए जानें कुछ खास ब्रीदिंग एक्सरसाइज जो अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मददगार साबित हो सकती हैं।
 
1. पर्स्ड लिप ब्रीदिंग (Pursed Lip Breathing): पर्स्ड लिप ब्रीदिंग एक बेहद सरल लेकिन कारगर तकनीक है जो फेफड़ों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाती है। इसमें व्यक्ति को अपनी नाक से धीरे-धीरे सांस लेनी होती है और फिर होंठों को सीटी बजाने जैसी स्थिति में रखकर धीरे-धीरे मुंह से बाहर निकालना होता है। यह तकनीक CO2 को बाहर निकालने में मदद करती है और अस्थमा अटैक के दौरान पैनिक को भी कम करती है।
 
2. डायफ्रामेटिक ब्रीदिंग (Diaphragmatic Breathing): डायफ्रामेटिक ब्रीदिंग, जिसे 'बेली ब्रीदिंग' भी कहा जाता है, पेट की मांसपेशियों को सक्रिय कर के फेफड़ों तक अधिक हवा पहुँचाने में मदद करती है। इसे लेटकर या बैठकर किया जा सकता है। सांस अंदर लेते वक्त पेट को फुलाएं और बाहर निकालते वक्त धीरे-धीरे पेट को संकुचित करें। नियमित अभ्यास से यह तकनीक सांस की गहराई को बढ़ाती है और अस्थमा ट्रिगर्स से राहत देती है।
 
3. अनुलोम-विलोम प्राणायाम: भारतीय योग प्रणाली में अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बहुत प्रभावशाली माना गया है। इसमें बारी-बारी से एक नासिका से सांस लेना और दूसरी से छोड़ना होता है। यह तकनीक न केवल नासिका मार्गों को शुद्ध करती है बल्कि मानसिक तनाव को भी दूर करती है, जो अस्थमा के एपिसोड को ट्रिगर कर सकता है।
 
4. बटरफ्लाई ब्रीदिंग या स्ट्रॉ ब्रीदिंग: इसमें एक स्ट्रॉ के माध्यम से सांस ली और छोड़ी जाती है। यह तकनीक बच्चों और टीनएजर्स के लिए खासकर प्रभावी मानी जाती है, क्योंकि यह उन्हें खेल-खेल में सांस की गहराई सिखाती है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में मदद करती है।
 
5. ब्रह्मारी प्राणायाम (Bee Breathing): ब्रह्मारी प्राणायाम में गुनगुनाने जैसी ध्वनि करते हुए सांस बाहर छोड़ी जाती है। यह मस्तिष्क को शांत करता है, नर्व सिस्टम को रिलैक्स करता है और अस्थमा के इमोशनल ट्रिगर्स को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसे रोज़ाना 5 मिनट करने से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बेहतर होता है। 


अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 
ALSO READ: शिवलिंग मुद्रा क्या है? क्या सच में बॉडी के लिए है फायदेमंद? जानिए इस पॉवरफुल योग मुद्रा के बारे में

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी