जहां ग़ज़ल का ज़िक्र आएगा, वहां वहां बेग़म अख़्तर का नाम भी आएगा

नवीन रांगियाल

रविवार, 15 दिसंबर 2019 (11:59 IST)
ऐसा कहा जाता है कि अगर बेग़म अख़्तर ग़ज़ल को वो इज्‍जत नहीं दिला पाती तो ग़ज़ल के नए दौर में हमें न तो जगजीतसिंह मिलते और न ही मेहदी हसन मिल पाते। एक तवायफ की साहबजादी होने के बावजूद कोठों की चाहरदीवारी से बाहर निकालकर ग़ज़ल को संभ्रात परिवारों और महफिलों में लाने का श्रेय ‘मल्‍लिका ए ग़ज़ल ’ अख़्तरीबाई फैजाबादी को ही जाता है। जाहिर है जब-जब ग़ज़ल लिखा हुआ आएगा, बेग़म अख़्तर के नाम का भी ज़िक्र होगा।
 
साल 2019 में ग़ज़ल  और बेग़म अख़्तर पर जो सबसे ख़ूबसूरत काम हुआ है, वो किताब की शक्‍ल में सामने आया है। किताब का नाम है अख्‍तरी: ‘सोज़ और साज़ का अफसाना’। यह किताब बेग़म अख़्तर की गायिकी, ग़ज़ल, उनके मिजाज और निजी ज़िंदगी से जुड़ा एक ख़ूबसूरत कोलाज है।

बेग़म अख़्तर और उनकी गायिकी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किताब में कई लेखकों ने बेग़म अख़्तर से जुड़े अपने संस्‍मरण, साक्षात्‍कार और आलेख साझा किए हैं। किताब का संपादन यतीन्‍द्र मिश्र ने किया है। 
 
जो ग़ज़ल के दीवाने हैं उन्‍हें भी और जो ग़ज़ल नहीं सुनते हैं उन्‍हें भी यह किताब इसलिए पढ़ना चाहिए, क्‍योंकि उन्‍हें किताब में ग़ज़ल  की तरह ही बहती हुई लय में एक सुंदर भाषा पढ़ने को मिलेगी।
 
किताब में ग़ज़ल  की रवायत, उसके प्रति उस दौर में नजरिये से लेकर दादरा और ठुमरी के घरानों और संगीत के व्‍याकरण की कई जानकारियां हैं। 
 
एक ऐसी ग़ज़ल गायिका जिसकी हमने एलपी और रेडियो में सिर्फ आवाज ही सुनी उसकी शहाना तबियत और निजी जिंदगी के क़िस्से बेहद ही दिलचस्‍प तरीके से पेश किए गए हैं। बेग़म का बचपन, मकसद और ग़ज़ल गायिकी के सफर से लेकर उनकी मोहब्‍बत और फिर घरेलू ज़िंदगी का अफसाना इस कदर दिलचस्‍प है कि पढ़ने वाला उसमें डूबता चला जाता है और बेग़म की ज़िंदगी का गवाह बनता जाता है। 
 
किताब का सबसे ख़ूबसूरत और दिलचस्‍प पहलू यह है कि इसे किसी भी पन्‍ने से पढ़ सकते हैं। किताब के आखिरी पन्‍नों के लेखक को चाहे पहले पढ़ लें और शुरुआत वालों को बाद में। कहीं से भी पढ़ने पर कहानी समझ में आ जाएगी और वही आस्‍वाद हासिल होगा। 
 
वाणी प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है और संपादन यतीन्‍द्र मिश्र ने किया है। सलीम किदवई से लेकर शिवानी, शीला धर, ममता कालिया, युनुस खान, सुनीता बुदिृराजा और यतीन्‍द्र मिश्र के अलावा कई नए लेखकों ने अपने अंदाज में ‘मल्‍लिका ए ग़ज़ल ’ की कहानी को बयां किया है।

अपने होने में पूरी तरह से ईमानदार इस किताब में बेग़म की आजाद ख्‍याली से लेकर उनके सिगरेट और व्‍हिस्‍की के शौक तक को पूरी बेबाकी के साथ जाहिर किया गया है। ग़ज़ल, ठुमरी, दादरा और बेग़म अख़्तर के बारे में इस तरह उल्‍लेखित किया गया है कि कई बार यह तय करना मुश्‍किल हो जाता है कि ग़ज़ल और बेग़म अख़्तर अलग-अलग हैं या कोई एक ही शै।
 
ग़ज़ल, गायिकी और बेग़म अख़्तर को जरा भी समझने वालों को यह किताब जरुर पढ़ना चाहिए। किताब के पेपरबैक्‍स की कीमत 395 रुपए है, लेकिन इसकी खरीदी आपकी लाइब्रेरी के साथ आपकी संगीत की समझ को भी जरूर समृद्ध करेगी।   

पुस्‍तक: अख़्तरी: सोज़ और साज़ का अफ़साना 
लेखक, संपादक यतींद्र मिश्र
कीमत: 395,
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन 
 

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