'इन रंगों को रख दो मेरी हथेलियों परकि जब मैं निकलूं तपती हुई पीली दोपहर में अकेलीतो इन्हें छिडक सकूं... दुनिया की कालिमा परमुझे इसी कैनवास पर तुम्हारे दिए रंग सजाना हैप्यार कितना खुबसूरत होता हैसबको बताना है...' (तुम्हारे दिए रंग)
प्रेम यहां मोह के नाजुक धागों में बंधा रंगीन स्मृतियों की झालर है, जो सदा के लिए मन के द्वार पर टंग गई है, खास कर जहां प्रेम की दस्तक तो है पर न आ पाने की पीड़ा भी। जब वे लिखती हैं,
'कुछ मत कहना तुम
मुझे पता हैमेरे जाने के बादवह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर रुका हुआ है
चमकीला तरल मोतीटूट कर बिखर जाएगागालों पर'
मेरे विचार और संस्कार मेंख़ामोशी से झांकती होक्योंकि तुमसे जुड़ी है मेरी पहचान... (मां तुम जो मंत्र पढ़ती हो)
हर बार बेटों के इंतजार मेंजन्म लेती रहें बेटियांपोंछ कर अपने चहरे सेछलकता तमामअपराध-बोध...आगे बढ़ती रहे बेटियांजन्म लेती रहें बेटियां...