झूठ का पेड़ : ओड़िया के प्रसिद्ध कथाकार का बहुचर्चित कहानी संग्रह...
- संतोष कुमार
प्रख्यात ओड़िया कथाकार गौरहरि दास की कहानियां पहली नजर में ही गांवों के यथार्थपरक चित्रों और यादगार चरित्रों से पाठक को परिचित करा देती हैं। उनकी कहानियों में एक तरफ आम बोलचाल की सहज-सरल भाषा है तो दूसरी तरफ ओडिशा के भद्रक अंचल का सुवास। लेकिन वे अंचल विशेष के कथाकार नहीं हैं। संग्रह की नामधर्मा रचना 'झूठ का पेड़' हो या अन्य कहानी 'घर', वे गांव को शहर से और शहर को गांव से जोड़ देती हैं।
ओडिशा के जनजीवन को समग्रता में पेश करते हुए बिना किसी भाषायी या शिल्पगत चमत्कार के गौरहरि ने सृजन के शिखर छुए हैं, लेकिन इसके लिए उन्होंने न तो किसी देशी-विदेशी दर्शन का सहारा लिया, न ही किसी तरह के बौद्धिक तामझाम खड़े किए।
जनसंचार माध्यमों से अपनी सम्पृक्ति के चलते वे जानते हैं कि जनधर्मी सृजन के लिए किसी दर्शन या वाद से जुड़ने के बजाय सामान्यजन से सीधे जुड़ना ज्यादा उचित है और हम जानते हैं कि गौरहरि देश के बड़े कथाकार-पत्रकार ही नहीं, आमजन के शुभेच्छु भी हैं।
ओडिशा के गांवों और शहरों की प्राकृतिक सुषमा के साथ-साथ वहां की जीती-जागती जिंदगी और अमीरी-गरीबी का संघर्ष देखना हो तो किसी समाजशास्त्री की पोथी पढ़ने के बजाय गौरहरि की कहानियां पढ़ना ज्यादा उपयोगी होगा, क्योंकि समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को चित्रित करते हुए नए-पुराने सामंतवाद को भी गौरहरि ने प्रश्नाकुल दृष्टि से देखा है।
वे अपने समाज की राई-रत्ती जानने के साथ उसे अभिव्यक्त करने की कला में भी पारंगत हैं। उनकी कहानियों में हम भारतीय चेतना के अंतरंग चित्रों को साक्षात् देखते ही नहीं, बल्कि महसूस भी करते हैं।
लेखक गौरहरि दास के बारे में...
साहित्य अकादेमी के कार्यकारी मंडल के सदस्य रहे गौरहरि दास ओडिशा के समुद्र तटीय जनपद भद्रक के एक गांव में सन् 1960 में पैदा हुए। साहित्य में पीएचडी और पत्रकारिता में एमए कर ओडिशा की प्रतिष्ठित पत्रिका 'कथा’ के संपादक, दैनिक 'संवाद’ के फीचर संपादक और 'संवाद मीडिया संस्थान’ के प्राचार्य हुए।
ओड़िया में इनके 16 कहानी संग्रह, 5 उपन्यास, 5 निबंध संग्रह, 3 यात्रा वृत्त और पत्रकारीय लेखन के कई संग्रह छपे हैं। अंग्रेजी में 'लिटिल मंक एंड अदर स्टोरीज’ तथा 'कोरापुट एंड अदर स्टोरीज’ के अलावा हिन्दी में 'मथुरा का मानचित्र तथा अन्य कहानियां’ और 'दूर आकाश का पंछी’ प्रकाशित हैं।
तीन दशक से ओड़िया पाठकों में अत्यंत लोकप्रिय स्तंभ 'जीवनर जलछवि’ लिख रहे गौरहरि की तमाम रचनाएं भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। उन्होंने खुद भी यशपाल, कृष्णा सोबती, कुलदीप नैयर, रस्किन बॉन्ड और बेंजामिन की कृतियों के ओड़िया अनुवाद किए हैं। बचपन से ही जिंदगी की हकीकत से दो-चार होते रहे गौरहरि के संघर्षमय जीवन की झलक उनकी रचनाओं में यत्र-तत्र दिख जाती है।
अमेरिका, चीन, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड्स जैसे अनेक देशों की यात्रा कर चुके गौरहरि को 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, 'संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’ और 'ओडिशा साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अलावा 'फकीर मोहन सेनापति पुरस्कार’ भी प्राप्त हैं।
पुस्तक : झूठ का पेड़
प्रकाशक : राधाकृष्णा प्रकाशन, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली