मैं सरकारी अस्पताल में अपने टेस्ट करवाने गया-फुरसत मिलने पर उधर मौजूद कैंन्टीन से पोहा और जलेबी खरीदी और मज़े से वहीं खड़े-खड़े खाना-पीना शुरू कर दिया-
ऐन उसी वक़्त मेरी नज़र कुर्सी पर बैठे एक छोटे बच्चे पर पड़ी जो बड़ी हसरत से मुझे ही देख रहा था, मैंने इंसानी हमदर्दी में जल्दी से उस बच्चे के लिए भी पोहा और जलेबी खरीदी जो बच्चे ने बिना ना किए ले लिए और जल्दी-जल्दी खाने लगा।
बेचारा पता नहीं कब से भूखा होगा- ये सोचकर मैंने ऊपर वाले का शुक्र अदा किया जिसने मुझे एक भूखे को खाना खिलाने का मौका दिया।
इतनी देर में उस बच्चे की मां, जो उसकी पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर खड़ी थी, वापस आई और बच्चे को जलेबी का आखिरी टुकड़ा खाते देखा!!!
फिर अचानक पता नहीं उसे क्या हुआ कि वो दोनों हाथ उठा कर, जोर-जोर से चिल्लाने लगी जिसने उसके बच्चे को ये चीज़ें दी उसे गालियां देने लगी।
कह तो वो बहुत कुछ रही थी, मगर मैंने वहां से फरार होते हुए जो चंद बातें सुनीं वो ये थीं:-
कौन है वो "कमीना" जिसने मेरे बच्चे को पोहा खिला दिया, मैं 25 किलोमीटर दूर से किराया लगा कर उसके खाली पेट टेस्ट करवाने लाई थी...