मालवा की साहित्यकार पुष्पा दसौंधी की पांच किताबों का विमोचन

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भारत ऐसा देश, यहां 'गाली' भी गा कर दी जाती है...:  कवि सत्यनारायण सत्तन
 
 शहर की वरिष्ठ साहित्यकार पुष्पा दसौंधी की पांच किताबों का विमोचन शुक्रवार शाम 6:00 बजे श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण सत्तन की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। उन्होंने कहा लोकोक्ति, मुहावरे सजावट का सामान नहीं, यह तो समृद्ध साहित्य है इसे सहेजना होगा। हमें अपनी बोली पर शर्म नहीं गर्व करना चाहिए। जहां कांटे हैं, वहां फूल भी हैं। जीवन एक किताब है, हिन्दुस्तान ही ऐसा देश है, जहां पर गाली भी गा कर दी जाती है। 
 
रामायण जी का अरण्यकाण्ड हमें सेवा, सत्कार सिखाता है। लेखिका की ये 5 किताबें पंचतत्व के समान हैं। बतौर मुख्य अतिथि माननीय पुष्यमित्र भार्गव (महापौर इंदौर) विशेष रुप से उपस्थित थे। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सूर्यकांत नागर जिन्होंने पुष्पा जी की मालवी मुहावरे की भूमिका लिखी। आप मानते हैं कि भाषा, बोली, मुहावरों लोकोक्तियों और पहेलियों का बहुत महत्व होता है। ये जीवन के अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के उपकरण हैं। 
 
वामा साहित्य मंच के बैनर तले आयोजित समारोह में वरिष्ठ लेखिका ज्योति जैन ने मालवी ब्याव-गीत पुस्तक की भूमिका में लिखा - ब्याह के मालवी लोकगीत बताशे जैसे मीठे अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित करते हैं और इन पुस्तकों की विशेषता यह है कि मालवी रचनाओं का साथ के पृष्ठ पर हिंदी अनुवाद भी किया गया है। उन्होंने कहा कि कि मालवी बोलेंगे - बांचेंगे तो ही बचेगी। 
 
वामा साहित्य मंच की संस्थापक अध्यक्ष पदमा राजेन्द्र ने जीवन किताब की भूमिका में लिखा है कि कविता की दुनिया ही अलग होती है, यह दुनिया के समानांतर एक ऐसे वैकल्पिक संसार का निर्माण करती है जहां मुक्ति के अनेक रास्ते ही नहीं, अपितु पड़ाव भी होते हैं। 
 
मालवा की मीरा कही जाने वाली वरिष्ठ साहित्यकार माया मालवेन्द्र बदेका ने लेखिका की लोकगीत 'गाली' की भूमिका में गाली, दोहा, पारसी, पहेली, केवाड़ा के विषय में महत्वपूर्ण बात कही। लेखिका की रचनाधर्मिता में मालवी की मिठास बसी है। आपकी पांचों किताबों की अपनी विशिष्टता है। इन रचनाओं के माध्यम से मालवी लोक-लुभावन शैली का प्रचलन गतिमान होगा। विविध विधाओं में रचित किताबों से मालवी की महक सहज ही पाठकों को मोहित करती है। लेखिका ने अपनी प्रतिभावना सबके मध्य साझा की। संचालन डॉ. गरिमा दुबे ने किया और आभार वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप नवीन ने माना। स्वागत इंदु पाराशर, संगीता, कल्पना व आलोक दसौंधी  ने किया।

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