साहित्य महोत्सव का आगाज सुप्रसिद्द साहित्यकार गोपाल दास नीरज की महफिल से हुआ। गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है नामक इस महफिल में कवि सरोज कुमार ने नीरज के जीवन, रचनाकर्म और संघर्ष पर चर्चा की। बीच-बीच में नीरज ने अपने गीतों और दोहों से आकर्षक समां बांध दिया। हर लंबे सवाल का जवाब नीरज ने बड़ी ही खूबसूरती से सारगर्भित दोहों में दिया। नीरज ने अपनी प्रिय रचना 'कारवां गुजर गया' के स्थान पर 'छुप-छुप अश्रु बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है' रचना को बताया।
अपनी बात को इस दोहे के साथ उन्होंने विराम दिया कि -
''ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास,