इंदौर साहित्य महोत्सव में राजीव नेमा ने ली दर्शकों की चुटकी

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इंदौर साहित्य महोत्सव 2017 के द्वितीय दिन रचनाकार का समाज से रिश्ता, लखनऊ के रात्रीचर, औरत नहीं है खिलौना तथा वरिष्ठ एवं युवा साहित्यकारों का रचनापाठ संपन्न हुआ। साथ ही साहित्य समारोह को उल्लासपूर्ण और ताजगी भरा बनाने के लिए मस्ती, मजाक और खिलखिलाहटों का भी इंतजाम किया गया। अमेरिका में बसे 
इंदौरी इंजीनियर, थियेटर कलाकार, अभिनेता और यूट्यूब पर अपने लोकल भाषायी वीडियो से देश भर में छा जाने वाले राजीव नेमा भी इंदौरी दर्शकों से रूबरू हुए।

राजीव ने अपने स्थानीय गुदगुदाते चुटकुलों से लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। इस कार्यक्रम को लेखिका ज्योति जैन ने संचालित किया। राजीव नेमा ने अपने चिरपरिचित अंदाज में भिया राम का उद्घोष करवाया और दर्शकों को बताया कि कैसे उनके खेल खेल में बने वीडियो को देखते ही देखते इतनी लोकप्रियता मिल गई और इंदौर 1 के नाम से शुरू वीडियो कब 200 की संख्या पार कर गया उन्हें भी पता नहीं चला। 

राजीव ने बताया कि पहला वीडियो उन्होंने अपने अप्रवासी मित्रों को भेजा इंदौरियों को नहीं, उन्हें लगा कि इंदौरी तो ऐसे ही बोलते हैं उन्हें क्या मजा आएगा.... लेकिन जब इंदौर के अमेरिका, सिंगापुर आदि देश में रहने वाले दोस्तों को खूब मजा आया और खुद मुझे भी देखकर लगा कि भिया ये तो अच्छा काम हो गया है .. और बनाते हैं.... इस तरह वीडियो बनते गए और बरसों से इंदौर के मोहल्ले में प्रचलित भाषा से आत्मसात किए शब्द वीडियो में यकायक आने लगे...वे शब्द जो इंदौर के ओटलों पर नानी, दादी और घर के बुजुर्गों से सुने, वे सब निकलते गए और इस तरह यह सिलसिला चल निकला।  
 
पिताजी बैंक में थे तो तबादला होता रहा, नीमच, विदिशा से होते हुए इंदौर आए। जीएसआईटीएस तक आते आते तो पक्के इंदौरी हो गए थे आपके राजीव भिया। 
 
राजीव ने ठेठ इंदौरी अंदाज में अपने जीवन की गाथा भी सुनाई और इंदौरियों को खूब हंसाया। सेल्फी विद राजीव भिया और एक लंबे 'भिया राम' के उच्चारण के साथ मजेदार रिकॉर्ड भी अपने नाम किया.... 
वहीं दूसरी तरफ ध्वनि ही साहित्य का श्रृंगार है सत्र में भोपाल से आए विनय उपाध्याय ने अपने भाषायी चमत्कार से यह बताया कि शब्द और स्वर की प्रगाढ़तम नातेदारी है। श्रुति और स्मृति की हमारी यशस्वी परंपरा है। शब्द वास्तव में बुनियादी तौर पर ध्वनि है। आलंकारिकता, ध्वन्यात्मकता कंठ के माध्यम से अपनी बात को कहने का कौशल विकसित करती है। यही हमारी सदियों से सांस्कृतिक ताकत है। पंचम वेद का निर्माण ही इसलिए हुआ है।
  लखनऊ के रात्रीचर सत्र में अनिल यादव में अपना रिपोर्ताज पढ़ा। तीसरे सत्र में साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिनमें सुप्रसिद्ध साहित्यकार अरुण कमल, अ नुराधा सिंह, विवेक चतुर्वेदी, प्रकृति करगेती, सूर्यकांत नागर, जवाहर चौधरी, कैलाश वानखेड़े शामिल थे।। इस कार्यक्रम का संचालन रवींद्र व्यास ने किया। 
 
प्रकृति ने अपनी कविता 'शहर की पीठ पर एक रेल गुजरती है पीठ पर ढेर सारे छाले हैं झुग्गियों के रूप में....' से प्रथम वाचन किया और दूसरी कविता से पहले मंटो का कथन उद्धृत कर यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी कविता की भाषा ऐसी है जो हर कोई पचा नहीं सकता.... प्रकृति के अनुसार अगर किसी को कविता गंदी लगती है तो वे यह पहले ही जान लें कि हम उसी गंदे समाज में रहते हैं।

अपने निडर और साहसी लेखन के लिए प्रकृति एक सर्वे में भारत की उन 100 महिलाओं में शुमार हो चुकी हैं  जिन्होंने लेखन व कला के क्षेत्र में नियम बदले, नए रास्ते खोले व मिसाल कायम कर समाज को झकझोरा है। प्रकृति की प्रतिभा को देखते हुए हंस पत्रिका द्वारा प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान भी दिया गया है। 
औरत नहीं है खिलौना विषय पर आयोजित सत्र में मीनाक्षी स्वामी, शालिनी माथुर और निर्मला भुराडिया ने ज्वलंत विचार व्यक्त किए। शालिनी ने कहा कि साहसी लेखन की आड़ में महिला लेखिकाएं स्वयं ही सॉफ्ट पोर्नोग्राफी की हिमायती हो रही है..ऐसे में स्त्री विमर्श फिर इस मुहाने पर आ खड़ा है कि उसकी परिभाषा फिर से तय की जाए। 

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