समकालीन कथा और उपन्यास में एक सम्मानित नाम सुषम बेदी का निधन हो गया। वे 74 वर्ष की थीं। उन्होंने 1985 से कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क में हिंदी भाषा और साहित्य की प्रोफ़ेसर के रूप में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है।
उनकी पहली कहानी 1978 में प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका 'कहानी' में प्रकाशित हुई और तब से वे नियमित रूप से प्रकाशित होती रही हैं। 1979 से वे संयुक्त राष्ट्र अमरीका में जा बसीं अपने अंतिम समय तक निरंतर सृजनरत रहीं।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलंबिया में पढ़ाने वाली सुषम बेदी ने करीब आधा दर्जन उपन्यास लिखें हैं।अमेरिका में रहने वाले दक्षिण एशियाई लोगों के जीवन को उन्होंने अपनी रचनाओं में बहुत बारीकी से उकेरा है।
सुषम बेदी के निधन की खबर के साहित्य जगत में शोक की लहर है। कई लेखक, साहित्यकारों समेत पाठकों ने उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांंजलि दी है।
जयप्रकाश मानस ने लिखा प्रवासी कथाकारों में सबसे अधिक धीर-गंभीर व हिंदी के बहुसंख्यक पाठकों को प्रभावित करने वाली महिला लेखिका! उन्हें भावभीनी श्रद्धांंजलि दी।
सईद अयूब ने लिखा है- तमाम दुःखद ख़बरें ही मिल रही हैं आजकल। अभी ख़बर मिली कि वरिष्ठ कथाकार सुषम बेदी जी नहीं रहीं। मेरे द्वारा आयोजित 'खुले में रचना' के 12वें कार्यक्रम में उन्होंने शिरकत की थी। अभी कुछ ही महीने पहले साहित्य अकादमी द्वारा आईआईटी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में हमने एक साथ कहानी पाठ किया था। वे कैलोफोर्निया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में हिन्दी भाषा की प्रोफेसर रहीं और एक भाषा शिक्षक के रूप में भी उनसे मेरा कई वर्षों से जुड़ाव रहा।
प्रोफेसर बनने से पहले 1960 से लेकर 1970 तक उन्होंने कई भारतीय फ़िल्मों में एक अभिनेत्री के तौर पर काम किया। न्यूयॉर्क में बस जाने के बाद उन्होंने वहां के कई टेलीविजन कार्यक्रमों और कुछ फ़िल्मों में काम किया। उनकी बेटी पूर्वा बेदी भी एक जानी मानी अभिनेत्री हैं। सादर विदा मैम! विनम्र श्रद्धांजलि!
चंद्रेशर ने लिखा- अभी आपके जाने का वक़्त नहीं था। आपसे फ़ेसबुक पर लंबे अरसे से जुड़ा था। आपको पढ़ना ख़ुद को संवेदना से जोड़ लेना था। आपको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
इसी तरह कई अन्य लेखकों और उनके चाहने वाले पाठकों ने भी उन्हें श्रद्धांंजलि दी है।