और प्रेम बांधता है, मैत्री मुक्त करती है। प्रेम किसी को बांध सकता है अपने से, पजेस कर सकता है, मालिक बन सकता है, लेकिन मित्रता किसी की मालिक नहीं बनती, किसी को रोकती नहीं, बांधती नहीं, मुक्त करती है। प्रेम इसलिए भी बंधन वाला हो जाता है कि प्रेमियों का आग्रह होता है कि हमारे अतिरिक्त और प्रेम किसी से भी नहीं। लेकिन मित्रता का कोई आग्रह नहीं होता। एक आदमी के हजारों मित्र हो सकते हैं, लाखों मित्र हो सकते हैं,