1933 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित इवान बूनिन (1870-1953) रूसी कविता के एक प्रमुख कवि व कहानीकार माने जाते हैं। उनका जीवन काफ़ी उथल-पुथल भरा रहा। रूस में हुई अक्टूबर क्रांति के बाद वे रूस छोड़कर पेरिस में जा बसे और वहीं उनका निधन हुआ। सोवियत सत्ता के काल में रूस में उनकी कविताएँ लगभग प्रकाशित नहीं हुईं, लेकिन पेरेस्त्रोइका के बाद आज तक उनकी पुस्तकें करोड़ों की संख्या में छपी हैं।
मीठी अनुभूतियों से भरी तुम
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तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेता हूँ और फिर देर तक उसे ध्यान से देखता रहता हूँ
मीठी अनुभूतियों से भरी तुम आँखें झुकाए बैठी हो
इन हाथों में तुम्हारा सारा जीवन समाया हुआ है
महसूस कर रहा हूँ मैं तुम्हारे शरीर की अगन और डूब रहा हूँ तुम्हारी आत्मा की गहराइयों में
और भला क्या चाहिए? सुखद हो सकता है क्या जीवन इससे अधिक?
पर, ओ परी विद्रोही! हम परवानों पर झपटने वाला तूफ़ान सनसना रहा है जो दुनिया के ऊपर मौत का संदेश लेकर।