वो बचपन कितना प्यारा था

अजय बर्वे
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वो कागज की कश्‍ती थी और बारिश का पानी था
कोमल मन पूरी तरह आवारा था।
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में
हाय वो बचपन कितना प्‍यारा था।।

बिना कुछ कहे ही माँ का वो सबकुछ समझ जाना,
उसका गुस्‍से से डाँटना फिर प्‍यार से समझाना कितना प्‍यारा था
अब तो माँ से मिले महीनों हो जाते हैं,
पहले तो उसकी ममता की छाँव में अपना हर पल गुजारा था
हाय वो बचपन कितना प्‍यारा था।

बड़े भाई या बहन के साथ निकलते थे गलियों में खेलने
छोटा होने की वजह से हर बार होती थी कच्‍ची रोटी
अब तो पक गई है ये लेकिन वक्‍त नहीं होता खुद के लिए
तब तो दोस्‍तों के साथ खेलने में अपना पूरा वक्‍त गुजारा था
हाय वो बचपन कितना प्‍यारा था

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याद आता है गर्मियों की छुटि्टयों में मामा के गाँव जाना
उस गाँव में सँकरी गलियों और खेतों का सुंदर नजारा था
पूरे दिन करते थे धमाचौकड़ी नहीं कोई रोकने वाला था
रात में नानी की कहा‍नियाँ सुनकर उन छुट्टियों को गुजारा था
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन ‍कितना प्‍यारा था


ठंड के दिनों में देर तक रजाई में दुबके रहना
जल्‍दी उठकर स्‍कूल जाना किसी को न गवारा था
माँ का प्‍यार से कहना स्‍कूल जाओगे तो बड़े आदमी बनोगे
माँ ने आँखों में अपने बेटे के भविष्‍य का सपना सँवारा था
हाय वो बचपन कितना प्‍यारा था।

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बगीचों में दोस्‍तों के साथ आम चुराकर खाना
पेड़ों से गिरने पर चोट लेकर घर आना
पापा की डाँट से हर वक्‍त माँ ने ही बचाया था
चोट पर मरहम लगाती उस माँ की ममता का अहसास कितना प्‍यारा था
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन क‍ितना प्‍यारा था

तितलियों को पकड़ने दौड़ा करते थे
खिलौनों के टूटने पर रोया करते थे
अब तो एक आँसू भी रूसवा कर जाता है
तब तो दिल खोल कर रोया करते थे
घर में सबसे छोटा मै सबका कितना दुलारा था
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन कितना प्‍यारा था।