लेखिका ज्योति जैन लघुकथा और कविताएं लिखती हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हर माध्यम में उनकी सरस प्रस्तुतियां आती रही हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन के अनेक साहित्य और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों में वे यशस्वी योगदान देती रही हैं। अब तक उनकी दर्जनभर किताबों का प्रकाशन हो चुका है और कई पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किए जा चुके हैं। पढ़िये अटाला शीर्षक से उनकी ताजा कविता।
पुरानी मान्यताओं व परम्पराओं पर चलना शायद नारी को सुहाता है.....
माँ और सासुमाँ की तरह वो भी दीवाली की सालाना सफाई मे जुट जाती है....
अटाला निकालने.....,
जिसमें खज़ाने की तरह कई
चीज़ें मिल जाती है...।
कभी माँ के हाथ का क्रोशिये का थालपोश....
कभी अपनी युवावस्था के कुछ कपड़े.....
गर्भावस्था का पहला चूड़ा... ..
बेटियों के नन्हें कपड़े, स्वेटर...,
हाथ के काले मनक्ये,.. छोटी गोदड़ी... नन्ही पाजेब... ।
और कभी आए- गए लिफाफे....
जो अलमारी मे बिछे कागज के नीचे छुपे मिल जाते हैं.....
और हाँ...! पीले पड़ चुके पन्नों वाले खत भी तो...!
और इन पुरानी चीज़ों मे, पुरानी यादों की खुशबू...किसी खजाने से कम नही होती... ।