जो बांधती है, उन नन्हें हाथों को,
दुनिया की कशमकश से।
पिता वो समंदर है,
जो देता है हर नायाब मोती,
बना इनका जहां, उसमें घाव कर दिए,
अपने कर्मों से।
उस डोर की इन्होंने, कीमत न समझी,
पिता के वात्सल्य के मायने नहीं बदले,
अपनी औलाद के लिए।
वो आज भी खड़ा है, अपने अंश के लिए,