निशा माथुर
चांद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं
आंख मिचौली सी करती, हर रात सजाया करती हूं।
तिरछी चितवन से तारों की, तड़पन निहारा करती हूं
तन्हाई का इक इक क्षण, चितचोर सजाया करती हूं
मेरी आरोही सांसो में, यादों का गीत सजा कर के
मुखरित मन से ही अंतर्तम, संगीत सजाया करती हूं
थाम उजाले का दामन, सुख स्वप्न सजाया करती हूं
हंसी ठिठोली सुख की हो, कुछ स्वांग रचाया करती हूं
अमृत के फीके प्याले जब, जीवन में सांसे ना भरे
आशाओ की मदिरा का, रसपान कराया करती हूं
चांद टकटकी देख रहा मैं, इंतजार कराया करती हूं
स्पंदित धड़कन पे बारिश का, मोर नचाया करती हूं
बंधी अधूरी परिभाषा, खिलती भोर सजाया करती हूं
धूप संग मेरी परछाई, यूं चलते-चलते कभी ना थके
तुझ संग मेरे मीत, प्रीत की ये डोर बंधाया करती हूं