नारी के अस्तित्व को दर्शाती कविता : हां, मैं एक स्त्री हूं...

हां, मैं एक स्त्री हूं, एक देह हूं, 
क्या तुमने देखा है मुझे देह से अलग? 
 





 
पिता को दिखाई देती है मेरी देह एक सामाजिक बोझ,
जो उन्हें उठाना है अपना सर झुकाकर। 
 
मां को दिखाई देती है मेरी देह में अपना डर अपनी चिंता, 
भाई मेरी देह को जोड़ लेता है अपने अपमान से।
 
रिश्ते मेरी देह में ढूंढते हैं अपना स्वार्थ, 
बाजार में मेरी देह को बेचा जाता है सामानों के साथ। 
 
घर के बाहर मेरी देह को भोगा जाता है,
स्पर्श से, आंखों से, तानों और फब्तियों से।
 
संतान उगती है मेरी देह में, 
पलती है मेरी देह से और छोड़ देती है मुझे।
 
मेरी देह से इतर मेरा अस्तित्व 
क्या कोई बता सकता है? 
 

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