हिन्दी कविता : रोक दो टोक दो

आरती चित्तौडा
रोक दो, टोक दो हर उस इंसान को 
घूम रहा गलियों में, जो बिना लगाए मास्क को
झिझक का बंधन तोड़ दो
स्टेट्‍स को छोड़ दो 
रोक दो टोक दो
बचाओ अपने आपको, अपने आसपास वालों को
दौर कठिन है संभल जाओ
जीवन का आधार, बना लो मास्क को
रोक दो टोक दो
नारी हो, पुरुष हो, बच्चा हो, बूढ़ा हो,
ना करो लिहाज, हो जाए तो होने दो शर्म से लाल 
पहनेगा मास्क तो बचेगी जिंदगी
उसे रोक, दो टोक दो,
गांव की पगडंडियों पर, शहर की सड़कों पर, 
हाईवे पर चलने वाले हर उस शख्स को,
कह दो! भाई मेरे, मास्क लगा लें, रख ले दो गज दूरी 
मास्क है अब हम सबके लिए जरूरी
रोक दो, टोक दो। 

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