हिन्दी कविता : रजनीगंधा...

प्रतिलिपि कविता सम्मान हेतु
 
रजनीगंधा फूल-सा, 
महक उठा संसार। 
प्रिय संगम ऐसा हुआ, 
तन पर चढ़ा खुमार। 
 
तन पर चढ़ा खुमार, 
प्रमुदित हृदय का आंगन। 
रजनीगंधा खिला, 
आज जीवन के मधुवन। 
 
कह सुशील कविराय, 
खिला तन प्रेम सुगंधा। 
अनुपम रूप अनूप, 
देह है रजनीगंधा। 
 
रजनीगंधा की महक, 
फैली चारों ओर। 
प्रीतम मादक हो रहे, 
चला नहीं कछु जोर। 
 
चला नहीं कछु जोर, 
बांह जरा ऐसी जकड़ी। 
तन में उठत मरोड़, 
कलाई ऐसी पकड़ी। 
 
कह सुशील कविराय, 
प्रेम बिन जीवन अंधा। 
मृदुल प्रेम प्रिय संग, 
मन बना रजनीगंधा। 
 
 

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