एक मेघ गीत

श्रीकांत प्रसाद सिं
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बहुत गरजे, बहुत बरसे
तुम्हारे गाँव में बादल!

नहाया खूब जी भरकर
तुम्हारे द्वार का पीपल,

तड़पता भीगकर आँगन
कि तुमको खोजता पल-पल

चमकती दामिनी चम-चम,
लगाने नयन में काजल!

घटा काली बहुत बरसी
कि भीगी याद की चुनरी,

अटरिया रह गई सूनी
कि भीगा गीत का मन, री!

तुम्हारे संग की सखियाँ
विहँस कर कर रहीं घायल!

बहुत गरजे, बहुत बरसे
तुम्हारे गाँव में बादल!

साभार : अक्षरा