मधुर गंजमुरादाबादी
अम्बर में फहराएँ कीर्ति की ध्वजाएँ,
फिर अमर शहीदों की गाथाएँ गाएँ।
मुक्ति के उपासक जो निर्भय रणधीर,
सूरज से उगते थे, अंधियारा चीर।
यादों में चलो आज फिर उन्हें जगाएँ,
अम्बर में फहराएँ कीर्ति की ध्वजाएँ।
अर्पित कर अपना सब तन-मन-धन प्राण,
जो देकर गए हमें, संकट से त्राण।
बुझी नहीं जलती हैं, उनकी वे चिताएँ,
अम्बर में फहराएँ कीर्ति की ध्वजाएँ।
जिनके बलिदानों से हुए हम स्वतंत्र,
गूँजें फिर भारत में उनके ही मंत्र।
उन जैसे ही बढ़कर करतब दिखलाएँ,
अम्बर में फहराएँ कीर्ति की ध्वजाएँ।
अब न कहीं कोई भी हो तनिक, निराश,
नयनों में चमक जगे, मन में विश्वास।
जगह-जगह पर उनके मेले लगवाएँ ,
अम्बर में फहराएँ कीर्ति की ध्वजाएँ।
साभार : अक्षरा