लघुकथा : धर्मात्मा?

प्रज्ञा पाठक
वे नगरसेठों में गिने जाते थे। दान-पुण्य करने में नगर के शीर्षस्थ व्यक्ति।
 
एक दिन वे अपनी नई चमचमाती कार में बैठकर मंदिर गए। कार से उतरते ही एक दीन-हीन वृद्धा ने उनके निकट आकर याचना की-"बाबू जी! चार दिन से भूखी हूं। कुछ पैसे दे दीजिए।"
 
अपने उच्च वर्ण का ख्याल कर वे तनिक घृणा-भाव से पीछे हटे और जेब से पैसे निकालने लगे। तभी उनकी दृष्टि वृद्धा के अपनी कार पर सहारे के लिए रखे गए मलिन हाथों पर पड़ी और वे भीषण क्रोध में आकर चिल्ला उठे-"गलीज़ बुढ़िया! मेरी नई कार को गन्दा कर रही है।परे हट।"
ऐसा कहते हुए उन्होंने वृद्धा को लगभग धक्का ही दे दिया।
 
इसी बीच उनके प्यारे टॉमी ने कार को सूंघकर अपनी नित्यक्रिया से उसे अस्वच्छ कर दिया। यह देखकर वे मुस्कराए और उसे 'नॉटी बॉय' कहते हुए गोद में उठा लिया।

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