रचनाकार - दीपशिखा दुबे, इंदौर
वसुधा को आज जल्दी ही कॉलेज पहुंचना था, लेकिन किसी कारण से देर हो गई। आज दिवाली समारोह जो है। वहां प्रतिवर्ष धनतेरस के दिन कॉलेज में दिवाली समारोह मनाया जाता है और सभी सदस्यों को मिठाई के साथ ही बोनस भी मिलता है।
वसुधा जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा रही थी और शाम को मार्केट से लाने वाली चीजों के बारे में भी सोच रही थी। पिंकी के लिए नई फ्रॉक, बिट्टू के लिए नई साइकिल, घर के लिए रौशनी वाली माला और रंगोली खरीद लूंगी। इन सब विचारों में उलझी हुई वसुधा ऑटो का इंतजार कर रही थी और बार-बार घड़ी की तरफ देख रही थी कि तभी उसके सामने एक ई-रिक्शा आकर रुका।
सुबह से ही काम पर निकल जाती हूं। आज धनतेरस हैं, दिनभर काम करके जो भी पैसे आएंगे उनसे बच्चों को नई किताबे और स्वेटर ले दूंगी। वसुधा उसकी छोटी-छोटी आंखों में पलते बड़े-बड़े सपनों को देख रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि ये भी घर कि लक्ष्मी का ही एक रूप हैं।