The Kerala Story : द केरला स्टोरी इस वक्त काफी चर्चा में है। इसमें हिन्दू लड़कियों को यह नहीं पता रहता है कि उनके धर्म में भोजन करते वक्त प्रार्थना करते हैं या नहीं? तुम्हारे धर्म में तो लाखों भगवान है तुम किस भगवान को मानती हो? सबसे बड़े भगवान शिव अपनी पत्नी की मृत्यु पर रोते हैं तो वे कैसे भगवान हो सकते हैं? श्री राम अपनी पत्नी सीता को रावण से नहीं बचा सके तो वे तुम्हें क्या बचा पाएंगे? एक भगवान कई महिलाओं से प्रेम करते हैं तो वे कैसे भगवान हो सकते हैं? इसी तरह के कई सवाल एक मुस्लिम लड़की का किरदार निभा रही अदाकारा हिन्दू लड़कियों से पूछती है। उन लड़कियों के पास इसका कोई जवाब नहीं होता है। सवालों के जवाब कई तरह से दिए जा सकते हैं। हर संत के पास इसका जवाब है। जवाब शास्त्र सम्मत भी दिए जा सकते हैं। यहां प्रस्तुति है परंपरा से प्राप्त संक्षिप्त सा जवाब।
भोजन करते वक्त प्रार्थना : हिन्दू धर्म में मनुष्य की दिनचर्चा की प्रत्येक हरकत को एक आध्यात्मिक आयाम दिया है। जैसे सुबह उठते ही ईष्टदेव को धन्यवाद देते हुए मंत्र बोलते हैं उसी तरह भोजन करते वक्त तीन ग्रास ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए अलग निकालकर नमस्कार करते हैं और फिर भोजन की थाली के चारों ओर जल अर्पण करते हैं।
भोजन मंत्र :
1. ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे
शंकरप्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्यसिद्यर्थम् भिक्षां देहि च पार्वति।
तुम्हारे धर्म में तो लाखों भगवान है तुम किस भगवान को मानती हो?
हिन्दू धर्म ब्रह्मवाद पर आधारित है। ब्रह्म अर्थात वह परम शक्ति जो इस ब्रह्मांड के भीतर भी है और बाहर भी। उसी से सबकुछ है और उसी से कुछ भी नहीं होने वाला होकर पुन: होने वाला है। ब्रह्म ही सत्य है, जो न तो पुरुष है, न ही स्त्री। वह सिर्फ ब्रह्म है। वह न तो भगवान है, न देवी है, न देवता और न ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ईश्वर न धरती पर है और न आकाश में लेकिन वह सर्वत्र होकर भी अकेला है। सृष्टि से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी वही एकमात्र होगा। जो भूत, भविष्य और सबमें व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है।-अथर्ववेद 10-8-1.....ईश्वर एक ही था, एक ही है और एक ही रहेगा।-अथर्ववेद १३/४(२)/१६,१७,१८।
एकं ब्रह्म द्वितीय नास्ति नेह ना नास्ति किंचन' अर्थात एक ही ईश्वर है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है- अंशभर भी नहीं है। ईश्वर (ब्रह्म) का कोई संदेशवाहक नहीं और न ही कोई अवतार है। संदेशवाहक या अवतार देवी और देवताओं के होते हैं। ऋषियों ने ईश्वर के वचनों को सुना और उसकी स्तुति की जिसे वेद कहा गया। वे ईश्वरीय वचन है जिनमें आदेश, संदेश या आज्ञा नहीं है, उसमें समाज, नियम, ज्ञान, विज्ञान और परम तत्व का चिंतन है।
ईश्वर तक पहुंचने या ईश्वर हो जाने के लिए ही मोक्ष के लाखों मार्ग है। ये लाखों भार्ग ही भगवानों के द्वारा उत्पन्न मार्ग है। जैसाकि गीता में मुख्यत: ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के बारे में बताया गया है परंतु हजारों योगमार्ग भी हैं। हिन्दू धर्म में जिन्हें हजारों जातियां या देवी-देवता नजर आते हैं, दरअल वे हजारों मार्ग है उस सत्य तक पहुंचने के लिए। कोई शिव के मार्ग से जाता है, कोई विष्णु के मार्ग से तो कोई श्रीराम या श्रीकृष्ण के मार्ग से अध्यात्म के मार्ग पर चलकर उस परम तत्व को प्राप्त करता है।
जो गॉड अपनी वाइफ के मरने पर ऐसे कॉमन मेन की तरह रोता हो वो गॉड कैसे हो सकता है?
- जैसा कि ऊपर स्पष्ट है कि ईश्वर, गॉड या परमेश्वर कौन है और कौन नहीं। जहां तक सवाल भगवान शिव का है तो शिवजी को ईश्वरतुल्य या ब्रह्म स्वरूप माना गया है। अर्थात ब्रह्म के जैसा। शिव अपने साकार रूप में रुद्र, शंकर, महेश और महादेव है और निराकार रूप में वे स्वयंभू शिव है। इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही है। जैसे हम शरीर में हैं तो हमारा रूप साकार है, परंतु हमारी आत्मा का कोई रूप या आकार नहीं है वह तो निराकार है।
- सती के दाह के बाद योगी शिव ने उनकी देह को कंधे पर धरा और वे रोते हुए संपूर्ण धरती पर विचरण करने लगे।। जहां जहां सती की देह के अंग गिरे वहां पर आज शक्तिपीठ बने हैं।
- शक्तिपीठ नहीं बनते तो क्या होता? कैसे शाक्त धर्म की उत्पत्ति होती? कैसे धर्म और मोक्ष का एक नया मार्ग जन्मता? इतिहास लिखने के लिए इतिहास को गढ़ना भी पड़ता है। हम शिवजी और रामजी की कथा को क्या कहते हैं शिवलीला और रामलीला? भगावान शिव एकमात्र ऐसे योगी या संन्यासी थे जिन्होंने संन्यासी होकर संसार के मार्ग पर चलना सिखाया, जबकि महावीर और गौतम बुद्ध ने संसार से विलग होकर संन्यास के मार्ग पर चलने का मार्ग बताया।
- भगवान शंकर को देवताओं का देवता अर्थात देवाधिदेव महादेव कहते हैं। वे लीलाधारी हैं। वे भूत, वर्तमान और भविष्य को जानकर भी लीला करते हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें न तो आप जानते और न मैं। फिर न वेद लिखे जाते और न पुराण। फिर हम किस की कथा सुनकर किसे आदर्श मानते? शिव जानबूझकर क्यों गणेशजी का सिर काटते हैं? शिव जानते थे कि सती जब दक्ष के यज्ञ में जाएगी तो उसके साथ क्या होगा और मुझे फिर क्या करना है? यदि वह सती को दक्ष के यज्ञ में नहीं जाने देते तो सती दाह नहीं होता और तब न वीरभद्र जैसे हजारों गणों का जन्म होता और न ही दक्ष का सिर कलम होता और तब न ही दूसरे जन्म में सती हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेती। तब फिर न तो धर्म का जन्म होता और न ही शिव पुराण रचा जाता है। तब शिवजी माता पार्वती को ध्यान मार्ग की 112 विधियों को बताकर उन्हें किस तरह से जन्म-मरण के चक्र से बाहर निकाल पाते?
सती दाह की कथा और मां पार्वती की कथा मात्र कथाएं नहीं है। इनमें धर्म, व्रत, उपवास, परिवार, समाज, नैतिकता, न्याय और मोक्ष का संपूर्ण दर्शन छुपा हुआ है। यदि यह नहीं होता तो न शैव धर्म होता और न शाक्त धर्म होता और न ही हिन्दू सनातन धर्म होता।
श्रीकृष्ण ने महाभरात के युद्ध में अर्जुन से कहा था कि यदि तुझे लगता है कि तू इन्हें मार रहा है तो ऐसा सोचना तेरा भ्रम है। काल इन्हें पहले ही मार चुका है, अब तो बस यह एक नाटक चल रहा है।
श्री राम अपनी पत्नी सीता को रावण से नहीं बचा सके तो वे तुम्हें क्या बचा पाएंगे?
- सामान्य व्यक्ति अपना भविष्य नहीं गढ़ सकता है। वह अपने जीवन के घटनाक्रम को अपने तरीके से संचालित नहीं कर सकता है, परंतु एक अवतारी पुरुष यह भलिभांति तय करके जन्म लेता है कि मुझे क्या करना और कैसा जीवन जीकर मानव समाज के समक्ष एक आदर्श स्थापित करना है।
- श्री राम को यह पता था कि क्या होने वाला है। उन्हें मालूम था कि सीता का अपहरण होने वाला है और उन्हें यह भी पता था कि कौन यह करेगा और सीता को कहां ले जाकर रखेगा। फिर भी श्रीराम ने अपहरण हो जाने देने और उन्हें ढूंढने की लीला की। दरअसल, श्रीराम ने अपनी सीता को अग्निदेव के हवाले कर दिया था और सीता की एक अन्य प्रतिकृति का अपहरण हो जाने दिया था।
- सोचिये यदि श्रीराम को वनवास नहीं होता, माता सीता का अपहरण नहीं होता। रामसेतु बनाकर वानर सेना श्रीलंका नहीं जाती और रावण का वध नहीं होता तो आज हजारों साल बाद भी उन्हें कैसे और किस आधार पर याद रखा जाता? यह सभी घटनाएं नहीं घटती तो कौन जान पाता कि हनुमानजी जैसा कोई महाबली है और जामवंत जैसा कोई बुद्धिमान है। रावण जैसा कोई महापंडित है और दशरथ एवं जनक से लेकर लव और कुश तक का जो इतिहास है वह नहीं होता तो भारत में आदर्श व्यक्तित्व और समाज की रचना कैसे होती?
श्रीराम के होने और उनके द्वारा लीला करने से आज भारत ही नहीं संपूर्ण एशिया में उनके द्वारा जो संस्कृति का जन्म हुआ है वह आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है। श्रीराम ने जंगल में रहकर आदिवासियों, दलितों और वंचितों के लिए जो किया था, वह शायद ही कोई कर पाता। श्रीराम ही थे जिन्होंने भारत को एक सांस्कृतिक सूत्र रूप में बांधा। पुराणों में लिखा है कि कलयुग में श्रीराम और हनुमान जी का नाम ही बचाने वाला एकमात्र मंत्र है। उनकी महिमा अपरंपार है।
एक भगवान कई महिलाओं से प्रेम करते हैं तो वे कैसे भगवान हो सकते हैं?
श्रीकृष्ण के माध्यम से इस धरती पर जितनी महिलाओं ने ज्ञान, सत्य या मोक्ष को प्राप्त किया, उतना धरती के इतिहास में किसी अन्य महापुरुष के माध्यम से यह संभव नहीं हो पाया है। भगवान बुद्ध के माध्यम से उनके काल में अनुमानीत रूप से करीब 15 से 20 हजार लोगों ने बुद्धत्व को प्राप्त किया था। उनमें मात्र कुछ ही महिलाएं थीं। उन महिलाओं को भी बड़ी मुश्किल से दीक्षा मिली थी।
उद्धव प्रसंग से यह भलिभांति प्रकट हो जाता है कि भक्ति का मार्ग ज्ञान के मार्ग से कहीं ज्यादा बड़ा है और महिलाओं ने श्रीकृष्ण के प्रति जो प्रेम प्रकट किया था वह कोई वासनात्मक प्रेम नहीं था। वह भक्ति का मार्ग था। उस दौरान श्रीकृष्ण की एक सखी ललिता ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो पाई थी तो मीरा के रूप में उसने जन्म लेकर पूर्णता प्राप्त की थी। उसी तरह सूरदास ने भी भक्ति काल में ही ज्ञान प्राप्त किया था।
श्रीकृष्ण ने सिर्फ महिलाओं से ही नहीं उन्होंने तो हजारों पुरुषों से भी प्रेम किया था। वृंदावन में जिन गोपियों के संग उन्होंने रास रचाया था वे तो सभी पिछले जन्म में ऋषि थे। इन ऋषियों की इच्छा के चलते ही उन्हें भक्ति के मार्ग को सीखाने के लिए सभी को राधा की गोपियां बनना पड़ा था।
सांसारिक प्रेम किसी एक से किया जा सकता है परंतु आध्यात्मिक प्रेम की कोई सीमा नहीं है। श्रीकृष्ण ने जितनी भी महिलाओं से विवाह किया था वे सभी विकट परिस्थिति में फंसी थी। इस संबंध में अच्छे से अध्ययन किया जा सकता है। श्रीकृष्ण के नाम के आगे सिर्फ एक ही महिला का नाम जुड़ता है और वह है श्रीराधा।