Diwali Decoration DIY: दिवाली पर आप रंगोली तो बनाते ही हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इस दि सुंदर मांडना यानी की परंपरागत अल्पना बनाते हैं जो कि बहुत ही सुंदर होते हैं। कहते हैं कि मांडनों को श्री और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि जिसके घर में इसका सुंदर अंकन होता रहता है, वहां लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती है। घर में हमेशा सकारात्मकता और प्रसन्नता बनी रहती है।
क्या है मांडना?
चौंसठ कलाओं में से एक चित्रकला का एक अंग है अल्पना। इसे ही मांडना भी कहते हैं और इसी का एक रूप है रंगोली।
भारत में मांडना विशेषतौर पर होली, दीपावली, नवदुर्गा उत्सव, महाशिवरात्रि और संजा पर्व पर बनाया जाता है।
हवन और यज्ञों में वेदी का निर्माण करते समय भी मांडने बनाए जाते हैं।
मांडने की एक खासियत यह भी है कि यह लंबे समय तक बने रहते हैं।
इसे बनाने के लिए गीले रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो सूखने के बाद लंबे समय तक उतने ही आकर्षक नजर आते हैं।
रंगोली में सूखे रंगों का प्रयोग किया जाता है जिसे कभी भी हटाया या मिटाया जा सकता है।
कैसे बनाएं मांडना के रंग:
चावल या चूने को मिलाकर गेरुआ, सफेद, पीला आदि रंग बनाकर मांडना के रंग तैयार किए जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में मांडना उकेरने में गेरू या हरिमिच, खड़िया या चूने का प्रयोग किया जाता है।
गेरू या हरिमिच का प्रयोग बैकग्राउंड के रूप में जबकि विभिन्न आकृतियों और रेखाओं का खड़िया या चूने से बनाया जाता है।
आप चाहे तो बाजार से मांडना के रंग और उन्हें बनाने के सांचे खरीदकर ला सकते हैं। यह सबसे आसान तरीका है।
जिस तरह रंगोली को बनाने के लिए सांचे मिलते हैं उसती तरह मांडना के भी मिलते हैं।
मांडना के प्रकार :- 1.स्थान आधारित, 2.पर्व आधारित, 3.तिथि आधारित और 4.वर्षपर्यंत आधारित अंकित किए जाने वाले आदि मांडना के प्रकार हैं।
क्या बनाते हैं मांडना में :-
मांडना में चौक, चौपड़, संजा, श्रवण कुमार, नागों का जोड़ा, डमरू, जलेबी, फेणी, चंग, मेहंदी, केल, बहू पसारो, बेल, दसेरो, सातिया (स्वस्तिक), पगल्या, शकरपारा, सूरज, केरी, पान, कुंड, बीजणी (पंखे), पंच कारेल, चंवर छत्र, दीपक, हटड़ी, रथ, बैलगाड़ी, मोर, फूल व अन्य पशु-पक्षी आदि बनाए जाते हैं। मांडने की पारंपरिक आकृतियों में ज्यॉमितीय एवं पुष्प आकृतियों के साथ ही त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, कमल, शंख, घंटी, स्वस्तिक, शतरंज पट का आधार, कई सीधी रेखाएं, तरंग की आकृतियां आदि भी बनाई जाती हैं।
कहां पर बनाते हैं मांडना:
दीवारों पर लिपाई-पुताई के बाद मांडने बनाए जाते हैं।
दीवार पर केल, संजा, तुलसी, बरलो आदि सुंदर बेलबुटे बनाए जाते हैं।
आंगन में खांडो, बावड़ी, चौक, दीपावली की पांच पापड़ी़ चूनर चौक।
सबसे खास होता है बीच आंगन का मांडना। यह दीप पर्व का विशेष आकर्षण होता है।
घर-आंगन में मांडने बनाकर अति अल्प मात्रा में मूंग, चावल, जौ व गेहूं जैसी मांगलिक वस्तुएं फैला दी जाती हैं।
चबूतरे पर पंचनारेल आदि बनाते हैं।
पूजाघर में नवदुर्गा, लक्ष्मीजी के पग, गाय के खुर और अष्टदल कमल, गणेश आदि बनाए जाने का महत्व है।
रसोईघर में छींका चौक, मां अन्नपूर्णा की कृपादृष्टि बनी रहे, इस हेतु विशेष फूल के आकार की अल्पना बनती है जिसके 5 खाने बनते हैं।
हर खाने में विभिन्न अनाज-धन-धान्य को प्रतीकस्वरूप उकेरा जाता है। गोल आकार में बनी इस अल्पना के बीच में दीप धरा जाता है।