पुर्तगाली कैसे आए भारत में?
पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुंचकर भारत और यूरोप के संबंधों को लेकर एक नए युग की शुरुआत की। इसके बाद धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने भारत आना आरंभ कर दिया। भारत में कालीकट, गोवा, दमन, दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की। वास्को डी गामा के 12 वर्षों के भीतर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्ज़ा जमा लिया। गोवा के लोगों को 451 सालों तक पुर्तगालियों का शासन झेलना पड़ा। इस दौरान लाखों लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया।
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भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में की गई तथा द्वितीय फैक्ट्री की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई। इस तरह भारत के उक्त क्षेत्रों पर स्वत: ही पुर्तगालियों का शासन शुरू हो गया। पुर्तगाल से प्रथम वायसराय के रूप में फ्रांसिस्को डी अल्मीडा और फिर बाद में अल्फांसो द अल्बुकर्क का आगमन हुआ। दोनों ने भारत को अपनी शक्ति का केंद्र बनाया। उसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। अल्बुकर्क ने 1510 ई. में गोवा को बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से छीनकर अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने एक ऑपरेशन के तहत पुर्तगालियों को गोवा से जाने पर मजबूर किया और तब यह भारतीय संघ में मिला।
कैसे आजाद होकर पुन: भारत का हिस्सा बना गोवा?
'लोहिया एक जीवनी' के अनुसार गोवा में आजादी का आंदोलन तो कई वर्षों से चल रहा था परंतु आज़ादी की अलख डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने 1946 की गर्मियों में जलाई थी। डॉक्टर लोहिया अपने मित्र डॉक्टर जूलियाओ मेनेज़ेस के निमंत्रण पर गोवा गए थे। फिर डॉक्टर लोहिया ने करीब 200 लोगों को जमा करके एक बैठक की, जिसमें तय किया गया कि नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा जाए। जब पुर्तगालियों को इसके पता लगा तो उन्होंने लोहिया की सार्वजनिक सभा करने पर रोक लगा दी। इसके बावजूद 18 जून 1946 को राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली प्रतिबंध को चुनौति देते हुए सार्वजनिक रूप से एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पुर्तगाली दमन के खिलाफ भाषण दिया। इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और मड़गांव की जेल में रखा गया। महात्मा गांधी के विरोध के बाद लोहिया को जेल से निकालकर उन्हें गोवा से बाहर कर दिया गया और उन पर 5 साल के लिए गोवा नहीं आने का प्रतिबंध भी लगा दिया।
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इसके बाद पुर्तगाली दमन से परेशान गोवा के हिंदुओं और धर्मांतरित कैथोलिक ईसाइयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा लेकर खुद को एकजुट करके आंदोलन प्रारंभ किया। इसके बाद विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नाईक, दत्तात्रेय देशपांडे और प्रभाकर सिनारी ने आज़ाद गोमांतक दल नामक एक संगठन बनाया। इन लोगों के विरोध प्रदर्शन के चलते इस संगठन के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके अफ्रीकी देश अंगोला की सिनारी जेल में रखा गया। इस जेल से विश्वनाथ लवांडे और प्रभाकर जेल से भागने में सफल रहे और फिर वे गुप्त रूप से लंबे समय तक क्रांतिकारी आंदोलन चलाते रहे। 1954 में लोहिया की प्रेरणा से गोवा विमोचन सहायक समिति बनी, जिसने सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा के आधार पर आंदोलन चलाया। महाराष्ट्र और गुजरात में आचार्य नरेंद्र देव की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने भी उनका भरपूर साथ दिया। इस बीच लोहिया ने आज़ादी की भावना रखने वाले लोगों को संगठित करने का काम किया। उन्होंने मुंबई में बसे गोवा के लोगों को एकत्रित करके अंदोलन की तैयारी करने को कहा और सभी को गोवा की मुक्ति के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान सभी लोग भारत की आजादी में भी लगे रहे। 1947 को भारत आजाद हुआ।
भारत की आजादी के बाद गोवा के लिए ऑपरेशन विजय हुआ लॉन्च:-
फरवरी 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि गोवा का प्रश्न महत्वहीन है, परंतु महात्मा गांधी और डॉक्टर लोहिया इसको नहीं मानते थे। विभाजन और सांप्रदायिक हिंसा के बाद भारत को स्वतंत्रता मिल गई लेकिन गोवा पुर्तगाल के ही कब्जे में ही रहा। लोहिया के बाद मधु लिमये ने गोवा मुक्ति की कमान संभाली। भारत सरकार ने 1955 में गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इससे भारत और पुर्तगालियों के बीच तनाव बढ़ने लगा। पुर्तगालियों कई आंदोलनकारियों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। गिरफ्तार के जेल में प्रताड़ना दी जाने लगी। उन दिनों गोवा की जेलें आजादी के दिवानों से भर गई थी। बाद में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पोप से हस्तक्षेप करने रिहाई की मांग की। र्तगाल आसानी से गोवा को छोड़ने के मूड में नहीं था।1961 के नवंबर महीने में पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चलाईं जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, इसके बाद माहौल बदल गया।
इसके बाद रत के तत्कालीन रक्षामंत्री केवी कृष्णा मेनन और नेहरू ने आपातकालीन बैठक की। इस बैठक के बाद 17 दिसंबर को भारत ने 30 हजार सैनिकों को 'ऑपरेशन विजय' के तहत गोवा भेजने का फ़ैसला किया। 18 दिसंबर को भारतीय सेना के तीनों अंगों ने मिलकर ऑपरेशन विजय लॉंन्च किया और इसके 36 घंटों के भीतर पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्होंने आत्मसर्पण के दस्तावेज़ पर दस्तख़त कर दिए।