भारत नाम सुनते ही हमारा सर फक्र से उठ जाता है। भारत एक ऐसी भूमि है जिसमें कई तरह की संस्कृति और परंपरा को जन्म दिया है। पुरे विश्व में भारत अपनी एकता और संस्कृति के लिए जाना जाता है। 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को अंग्रेजों की हुकूमत से आज़ादी मिली थी। इस आज़ादी के लिए भारतियों ने 200 साल तक अंग्रेजों की हुकूमत में संघर्ष किया था। इस independence day 2023 में भारत अपना 76वा स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। इस विशेष दिवस पर हम आपके लिए लेकर आए हैं एक विशेष कविता...
आज तुम्हे मैं भारत का गुणगान सुनाने आया हूं।
साहस, त्याग, तपस्या और बलिदान सुनाने आया हूं,
देशप्रेम की गाथा को कविता में आज पिरोता हूं
मात्रभूमि के चरणों को अपने शब्दों से धोता हूं।
ये वो धरती है जिसने हर प्राणी को स्थान दिया,
ये वो धरती जिसने रामायण गीता का ज्ञान दिया।
आयुर्वेद योग दर्शन का पाठ पढ़ाया दुनिया को
अर्थशास्त्र विज्ञान गणित का मर्म सिखाया दुनिया को।
याद करो जब देश बंधा था अंग्रेजी जंजीरों से,
याद करो जब भूमि रंगी पड़ी थी मृतक शरीरों से।
याद करो नरसंहाओं को जलियांवाला याद करो
सोने की चिड़िया के मुंह से छिना निवाला याद करो।
तब एक महाप्रतापी रानी ज्वाला बनकर फूट पड़ी लक्ष्मीबाई अंग्रेज़ों पर
महाप्रलय सी टूट पड़ी....
मंगल पांडेय की फांसी से मेरा भारत जाग गया
नाना साहेब के भालों से कॉलिन डरकर भाग गया।
बोस ने खून के बदले में आज़ादी का ऐलान किया,
ऊधम सिंह ने माइकल ओ डॉयर को लहलुहान किया।
वीर चंद्रशेखर को सब यूं ही आज़ाद ना कहते थे,
उनकी करतूतों से गोरे सहमे सहमे रहते थे।
बिस्मिल और अशफ़क़ुल्लाह ने जब ककोरी कांड किया,
हंसते-हंसते देश पर अपने प्राणों को कुर्बान किया
खुदीराम ने 17 की आयु में फांसी पाई थी,
भगत सिंह के गर्जन से सारी दुनिया थर्राई थी।
चाचा नेहरु की हिम्मत से चर्चिल भी घबराया था,
एक लाठी वाले के पीछे देश उमड़कर आया था।
झुकी हुकूमत उठा तिरंगा भारत फिर गुलज़ार हुआ
सपना 200 बरसों का 47 में साकार हुआ।
करो किसानों की इज़्ज़त हर सैनिक को तुम नमन करो
छोड़ो नफ़रत की बातें और अहंकार का दमन करो
अगर तुम्हारे मन में अपनी संस्कृति का सम्मान नहीं,
तो तुमको अपनी आज़ादी जीने का अधिकार नहीं।
मैं चाहता हूं भारत का बच्चा बच्चा विद्वान बने,
हर नारी की रक्षा हो, हर नर भी ज़िम्मेदार बने।
मेरी विनती इतनी है कि देश संभाले रहना तुम
मन में रखना भारत माँ को वन्दे मातरम कहना तुम। -प्रथमेश व्यास