पाक के साथ 1965 और 1971 के युद्ध में वो ‘कारनामा’ किया ‘पागी’ ने कि मानेक शॉ ने कहा- ‘पागी को बुलाओ, मैं उन्‍हीं के साथ डि‍नर करूंगा’

बात साल 2008 की है, जब फील्ड मार्शल मानेक शॉ तमिलनाडु के एक अस्‍पताल वेलिंगटन में भर्ती थे। जब वे बेहोशी की हालत में थे तो अक्‍सर एक नाम पुकारा करते थे... पागी... पागी, डाक्टरों ने एक दिन पूछा कि ‘Sir, who is this Paagi?’ इसके बाद मानेक शॉ ने खुद रणछोड़ दास पागी की शौर्य गाथा अपने मुंह से सुनाई थी।

भारतीय सेना के वीरों की शौर्य गाथा का जब-जब जिक्र होता है तो कई ऐसे सैनिकों के नाम जेहन में आते हैं, जिनकी वीरता की कहानी से दुश्‍मनों की रूह कांप जाती है। कुछ ऐसे भी ‘अनसंग हीरो’ हैं, जिनके बारे में लोग ज्‍यादा नहीं जानते हैं, लेकिन जब उनकी अतुलनीय शौर्य गाथा सामने आती है हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है।

रणछोड़ दास पागी एक ऐसा ही नाम है जो थे तो महज भेड़, बकरी और ऊंट पालने वाले एक सामान्‍य से व्‍यक्‍ति, लेकिन जब भारत की पाकिस्‍तान के साथ 1965 और 1971 के युद्ध की बात होती है तो उनका योगदान सबसे ज्‍यादा नजर आता है।

रणछोड़ दास पागी का जन्म गुजरात के बनासकांठा में एक आम परिवार में हुआ था। बनासकांठा पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ गांव है। रणछोड़ दास अपने परिवार साथ भेड़, बकरी और ऊंट पालकर गुज़ारा करते थे।

यह काम करते हुए वे इतने हुनरमंद हो गए कि ऊंट के पैरों के निशान देख कर बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार थे। इंसानी पैरों के निशान देखकर वजन से लेकर उम्र तक का अंदाज़ा लगा लेते थे। पैर का निशान कितने देर पहले का है और इस पर चलने वाला कितनी दूर तक गया होगा, यह सब एकदम सटीक बता देते थे।
उनके इसी हुनर की वजह से 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक यानी ‘पुलिस गाइड’ के रूप में नियुक्‍त कर लिया।

जब सेना के जनरल सैम मानेक शॉ को रणछोड़दास पागी रबारी के बारे में पता चला तो वे उनके फैन हो गए। मानेक शॉ उन्‍हें ‘मार्गदर्शक’ के नाम से बुलाते थे, यानी रेगिस्‍तान में रास्‍ता बताने वाला व्‍यक्‍ति।

साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में पाकिस्तान के सैनिकों ने धोखे से कच्छ के कई गांवों पर कब्ज़ा जमा लिया था, इंडियन आर्मी को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो और पैरों के निशान को अच्छे से समझता हो। सबसे पहला नाम आया रणछोड़ दास का। बस, इसके बाद उन्‍हें भारतीय सेना में स्काउट के रूप में भर्ती कर लिया गया।

पाक के 1200 सैनिकों को चटा दी धूल
1965 की मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक शहीद ही गए थे और भारतीय सेना की एक 10 हजार सैनिकों वाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुंचना था। रणछोड़ दास भारतीय सैनिकों के साथ कच्छ पहुंचे और वहां मौजूद पैरों के निशान देखकर ही बता दिया कि वहां कितने पाकिस्तानी सैनिक हैं? और सैनिक कहां छिपे है? रणछोड़ दास की निशानदेही पर जब भारतीय सेना ने एक्‍शन लिया तो वे यह देखकर दंग थे कि रणछोड़ दास का आंकलन सटीक था। पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने और धूल चटाने के लिए भारतीय सैनिकों के लिए इतनी जानकारी काफी थी। रणछोड़ दास की इस जानकारी की मदद से भारतीय सेना तय समय से 12 घंटे पहले ही मंजिल तक पहुंच गई।

मानेक शॉ भी थे पागी के फैन
इसी तरह रणछोड़ दास ने साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच के युद्ध में ना सिर्फ सेना का मार्गदर्शन किया, बल्कि गोला बारूद पहुंचवाने भी पागी ने खूब मदद की। पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जब भारतीय सेना ने जीतकर तिरंगा फहराया तो उसमें रणछोड़ दास की बड़ी भूमिका थी। मानेक शॉ ने खुद पागी को इसके लिए 300 रुपए का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था।

रोटी, प्याज, बेसन लेकर बैठे हेलिकॉप्टर में
1971 का युद्ध जीतने के बाद भारत के जनरल मानेक शॉ भी पागी के कारनामों के फैन हो गए। उन्‍होंने ढाका से आदेश दिया कि पागी को बुलवाओ, मैं डिनर उन्‍हीं के साथ करूंगा। पागी को लेने हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते वक्‍त पागी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया था। अधिकारियों ने नियमों के मुताबि‍क हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोल कर उसकी जांच की तो उसमें दो रोटी, प्याज और बेसन का एक पकवान (गाठिया) था। डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई और दूसरी पागी ने। सैम और पागी को लेकर यह किस्‍सा काफी मशहूर है।

ये उपलब्‍धि‍‍यां है पागी के नाम
गुजरात के सुईगांव अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया गया। यह पहली बार हुआ कि किसी आम आदमी के नाम पर सेना की कोई पोस्ट हो और साथ ही उनकी मूर्ति भी लगाई गई हो।
1965 और 1971 के युद्ध में पागी के योगदान के लिए उन्‍हें संग्राम पदक, पुलिस पदक व समर सेवा पदक दिया गया।
27 जून 2008 को सैम मानेक शॉ का निधन हो गया, साल 2009 में पागी ने भी सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्तिले ली। तब पागी की उम्र 108 वर्ष थी। साल 2013 में 112 साल की उम्र रणछोड़दास रबारी यानि पागी का निधन हो गया।
भारतीय सेना में उनके अतुलनीय योगदान के लिए आज भी गुजराती लोकगीतों में उन्‍हें याद किया जाता है। उनकी शौर्य गाथा, देशभक्ति, वीरता, त्याग और समर्पण को बहुत आदर के साथ याद किया जाता है। वे एक सैनिक की तरह भारतीय सेना के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए।
जल्‍द ही अजय देवगन की एक फ़िल्म भुज-'the pride of India' आने वाली है, जिसमें संजय दत्त रणछोड़दास रबारी 'पागी' का किरदार निभा रहे हैं

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