शाहूजी की रिहाई और मराठा एकता का संकट: राजाराम के बाद उनके पुत्र शिवाजी द्वितीय छत्रपति बने। मुगलों से संघर्ष जारी रहा। फिर आया सन 1707, जब औरंगजेब की मृत्यु हुई। उसके उत्तराधिकारी बहादुरशाह प्रथम ने एक चाल चली। उसने शाहूजी को रिहा कर दिया, लेकिन इसका मकसद शुद्ध नहीं था। वह चाहता था कि शाहूजी और शिवाजी द्वितीय के बीच उत्तराधिकार का विवाद छिड़े और मराठा आपस में ही लड़ पड़ें। शाहूजी सतारा लौटे। वहाँ शिवाजी द्वितीय से हल्का टकराव हुआ, लेकिन अंततः शाहूजी को पांचवें छत्रपति के रूप में ताज पहनाया गया। शिवाजी द्वितीय कोल्हापुर चले गए और वहाँ एक अलग राज्य की नींव रखी। लेकिन येसूबाई और सावित्रीबाई? वे अभी भी मुगल कैद में थीं। बहादुर शाह ने उन्हें बंधक बनाए रखा, ताकि शाहूजी उसकी शर्तों से बंधा रहे।
येसूबाई की मुक्ति: मराठा शक्ति का प्रतीक: 30 साल की कैद के बाद राजमाता येसूबाई और सावित्रीबाई की सम्मानजनक रिहाई हुई। यह सिर्फ एक पारिवारिक जीत नहीं थी, बल्कि मराठा साम्राज्य की ताकत का ऐलान था। शाहूजी को मुगलों ने छत्रपति के रूप में स्वीकार किया। मराठों ने अब सिर्फ स्वराज्य की रक्षा नहीं की, बल्कि पूरे भारत में अपनी धाक जमानी शुरू की।
शाहूजी का संघर्ष, येसूबाई की कैद, और पेशवा का उत्थान- यह सब उस महान साम्राज्य की नींव बने, जिसने भारत को एकजुट करने का सपना देखा। छावा की कहानी खत्म हुई, लेकिन बाजीराव की गाथा अभी बाकी थी।