गंगा तेरा पानी अमृत...

- महेश पाण्डे

SUNDAY MAGAZINE
कुंभ मेला अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ रहा है। उसके चार स्नान पर्व संपन्न हो चुके हैं लेकिन आस्था के अविरल प्रवाह पापमोचक गंगा को निर्विकार भाव से बहने देने की मांग होने लगी है। पहले दो स्नानों में तो गंगाजी में पानी की मात्रा और प्रवाह ठीक-ठाक था लेकिन बाद में बसंत पंचमी एवं माघ पूर्णिमा के स्नान पर्वों में गंगाजी में पानी की कमी बनी रही।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत ज्ञानदास ने चेतावनी दे डाली कि यदि गंगा के अविरल प्रवाह के साथ छेड़खानी जारी रही और पानी की कमी के साथ-साथ उसका प्रदूषण न रुका तो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद 12 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रस्तावित शाही स्नान का बहिष्कार करेगा। इस चेतावनी से प्रशासन की भागदौड़ शुरू तो हुई है लेकिन यह क्या रंग लाएगी, कहा नहीं जा सकता। साधुओं के अखाड़े प्रशासनिक अधिकारियों के साथ टिहरी बांध का दौरा कर वहां से गंगाजल छोड़े जाने की स्थिति का जायजा लेना चाहते हैं।

कुंभ मेले में इन दिनों बज रहे गीत 'गंगा तेरा पानी अमृत' भले ही कुंभ के धार्मिक माहौल को उत्सव का रूप देने में सहयोग कर रहे हों लेकिन गंगा जल के प्रदूषण का स्तर श्रद्धालुओं की आस्था पर भारी पर रहा है। विशेषज्ञ भी इस सच को स्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि हरिद्वार का सीवरेज सिस्टम सक्षम न होने से असंशोधित सीवेज गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। गंगा एक्शन प्लान को कितना अमलीजामा पहनाया जा रहा है यह इसी से पता चलता है कि कुंभ के सिलसिले में इस मुद्दे को लेकर जिला प्रमुख ने एक भी बैठक जरूरी नहीं समझी गई।

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ऋषिकेश और हरिद्वार शहर के लगभग दो दर्जन गंदे नाले आज भी सीधे गंगा में ही प्रवाहित हो रहे हैं। गंगा एक्शन प्लान के तहत हरिद्वार में 648 लाख रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा की दुर्दशा जारी है। अखाड़ों व साधु-संतों की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है कि यदि गंगा इसी तरह प्रदूषित होती रही तो इसका अस्तित्व कैसे बचेगा ? इस चिंता के पीछे इनके ठोस तर्क हैं। वह कहते हैं कि गंगाजल पीकर जीवन यापन करने वालों को कभी वे सारे पोषक तत्व स्वतः मिल जाया करते थे जो स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी हैं। गंगा की इस महत्ता को सबने स्वीकारा था लेकिन अव्यवस्थाओं के मकड़जाल से गंगा मुक्त रहे तब न पवित्र रहे। केंद्र ने स्नान पर्वों पर पानी की कमी न रहे इसके लिए निर्देश भी दिए हैं ।

केंद्र बराबर कुंभ के हालात की जानकारी लेता रहा है। हिंदू धर्मगं्रथ शिवपुराण में राजा भगीरथ ने अपने 60 हजार पुरखों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए भगवान शिव की आराधना की और उनके वरदान से इसे प्राप्त किया और सदियों से गंगा गौमुख से लेकर गंगासागर तक के 2,500 किलोमीटर तक के प्रवाह में अपनी जीवनदायिनी शक्ति के लिए पूज्य व स्तुत्य रही है और अब जब गंगा की यह जीवनदायिनी शक्ति ही नहीं रही तो यह पूज्य और स्तुत्य कैसे बनी रहेगी।

गंगा तट पर जाड़ों में आने वाले विदेशी पंछियों की तादाद इस वर्ष काफी कम रही और विशेषज्ञ इस घटना को इस क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ने के संकेत रूप में देख रहे हैं। हरिद्वार में भीमगोड़ा बैराज व आसपास से लेकर चीला तक विदेशी पक्षी जाड़ों में बहुतायत में आकर शीतकाल में प्रवास करते थे जो कि तमाम पक्षी प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बनते थे लेकिन इस बार ये पक्षी यहां बेहद कम संख्या में इन इलाकों में आए हैं। इन पक्षियों की संख्या सर्दी बढ़ने के साथ-साथ बढ़ा करती है। इस बार सर्दी तो हरिद्वार में खूब पड़ी लेकिन पक्षियों ने लगता है अपना रुख बदल लिया है। इलाके में बढ़ रहा मानवीय हस्तक्षेप जैसी आवाजाही और शोरगुल के अतिरेक की वजह से ऐसा होना माना जा रहा है।

अत्यधिक लोगों की आवाजाही का सीधा असर प्रकृति के इन मूक चितेरों और पर्यावरण के सर्वाधिक संवेदनशील इन प्राणियों पर पड़ा है। जाहिर है पर्यावरण के स्तर पर सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है। राज्य की भाजपा सरकार ने भी गंगा की सफाई के लिए विशेष अभियान चलाने की बात कही है लेकिन गंगा की मुसीबतें कम नहीं हो रहीं । फिलहाल कुंभ में साधु-संतों का प्रवेश अब धूमधाम से होने लगा है। ये साधु-संत गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने का अभियान चलाने की भी बात कह रहे हैं।

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